कविता // मेरी मातृभूमि मेरा गांव
विजय सिंह बिष्ट मेरी मातृभूमि मेरा गांव जिसकी गोदी में हम जन्में, वह पवित्र धरा है मेरा ग्राम, उसकी पूजा में हम अर्पित, शत् शत् उसको मेरा प्रणाम्।। इसका आदि पुरुष लोधा जो होगा, जिसने अविरल धरती को भोगा, नाम दिया लोदली * पावन धरती का, उनका स्मरण करें,नमन करें। कितने वंशज आए होंगे, त्याग पूर्व अपना मूल, कितनी राहें काटी होंगी, कितने पथ आए होंगे भूल, एक लक्ष्य था अचल संपत्ति का, चले नये लक्ष्य पाने की ओर, छोड़ अपनी जननी जन्मभूमि को चले बसाने नयी मातृभूमि की ओर। एक नहीं दो आए होंगे, लेकर ब्राह्मण औजी कोली, साथ संगनी पशुधन लेकर , आई होंगी बेचारी भोली।। बीर भट्ट सा रहा होगा बेचारा लोधी, संग में अग्रज था, वह भूमी का लोभी, बन संम्पदा चौरस धरती, पर किया कर्मभूमि का अभ्यास, जन्म मरण शुभ कर्मों से, नित नित किया नव प्रयास।। कितने हाथों से इस धरती को, नये नये खेतों में गूंथा होगा, घास फूंस की बना छोपड़ी, उसमें जीवन भोगा होगा , पनघट बना पंदयारे की रौली, कितने सावन बीते होंगे,कितनी होली।। लोधी सपूत देबू का, चला इतिहास नया, धारदेव ने पिता का, मार्ग और प्रसस्त किया। सरबू ,श्रदेव ने पशुपालन को, चरवाह