आजादी के अमृत महोत्सव में गुमनाम नायकों की प्रतिष्ठा
० योगेश भट्ट ० नई दिल्ली : भारत अपनी आजादी के अमृत महोत्सव में कुशल राजनीतिक नेतृत्व के कारण सभी जगह और हर मोर्चे पर प्रतिष्ठित हो रहा है। सुनियोजित दुष्प्रचार के जरिए जो विमर्श गढ़े गए उनकी कलई खुल रही है। सत्ता के इशारे पर चाहे राजशाही ने हो या लोकतांत्रिक निरंकुशता ने ,जिसने भी देश की आजादी के महानायकों को हाशिए पर पहुंचाया ,देश उनकी वास्तविकता को भांपकर अब धूल चटा रहा है । अपने एक ही जीवन में मृत्युदंड की सजा पाने वाले वीर दामोदर सावरकर हों या 84 दिन की भूख हड़ताल कर अंग्रेजी दासता और निरंकुश राजशाही के विरुद्ध बिगुल बजाने वाले टिहरी के मुक्तिनायक अमर बलिदानी श्रीदेव सुमन। इस परंपरा के असंख्य राष्ट्रभक्तों के सत्कर्म और समर्पण कोई नहीं भुला सकता। देश में नई शिक्षा नीति में मातृभाषा पर जोर देने के साथ ऐसे गुमनाम ऐतिहासिक प्रेरक व्यक्तित्वों के अध्ययन पर अमल आजादी के अमृत पर्व पर हो रहा है। ये विचार स्वातंत्र्यवीर श्रीदेव सुमन की पुण्यतिथि पर पर्वतीय लोकविकास समिति और हिम उत्तरायणी पत्रिका द्वारा प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में "आजादी का अमृत महोत्सव और सुमन की टिहरी"विषय पर आयो