अमृत काल में आजादी का ये कैसा अमृत महोत्सव
० बिनोद तकियावाला ० प्रेस की स्वतंत्रता पर इस साल की रिपोर्ट से पता चलता है कि पत्रकारों के व्यवहार के लिए “संतोषजनक” माने जाने वाले देशों की संख्या थोड़ी बढ़ रही है,लेकिन ऐसी संख्या भी है जहां स्थिति “बहुत गंभीर”है। नयी दिल्ली - आज कल सभी सरकारी,गैर सरकारी कार्यालयों 'सरकारी व सार्वजनिक स्थलो,सड़क के किनारों मेंआजादी के 75वें बर्ष का स्वतंत्रता प्राप्ति मे आजादी का महोत्सव मनाया जा रहा है।मनाया जाना भी चाहिए।वही दुसरी ओर दबी जुबान से ये भी चर्चा व चिन्तन हो रहा है कि आजादी का ये कैसा अमृत काल मे अमृत महोत्सव केन्द्र की भाजपा सरकार मनाने में व्यस्त है। आजादी के इस अमृत महोत्सव के नाम पर जनता की गढाई कमाई यानि टेक्स के पैसे को पानी तरह बहाया जा रहा है।एक बात सच है कि सड़कों,ऐतिहासिक इमारतों के रंग रोगन कर दीपक जलाकर,फीता काट कर ,फोटो खिचाकर अखबार व टेलीविजन में बाह-वाही लुटना,देश के इतिहास व शैक्षिक संस्थानों में अपने मन माफिक हटाना जोड़ना ही अमृत काल में आजादी का अमृत महोत्सव ह।जहाँ सरकार से प्रशन पूछना मना है। विगत कुछ वर्षो में भारतीय राजनीति की बदलते घटना क्रम में कुछ ऐसे पर