दादा लख्मी फ़िल्म देश ही नहीं बल्कि विश्व में हलचल मचा सकती है - हितेश शर्मा

दादा लखमीचन्द के जीवन पर आधारित फ़िल्म दादा लख्मी की चर्चा आज हरियाणा से निकल कर न केवल अपने देश बल्कि विदेशों तक पहुंच गई है। यशपाल शर्मा निर्देशित इस संगीतमय फ़िल्म की सफलता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राष्ट्रपति द्वारा नेशनल अवार्ड पाने के साथ ही यह फ़िल्म राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 78 से ज़्यादा अवार्ड प्राप्त कर चुकी है। लोगों का इस फ़िल्म को इतना ज्यादा प्यार मिल रहा है कि अभी तक के इस फ़िल्म के सारे शो हाउसफुल रहे हैं। इस फ़िल्म में योगेश वत्स ने बाल लख्मी की भूमिका निभाई है वहीं यशपाल शर्मा दादा लख्मी की भूमिका में नज़र आए हैं। यंग दादा लख्मी की भूमिका में नज़र आए हैं युवा अभिनेता हितेश शर्मा।
हितेश शर्मा यंग दादा लख्मी के रोल में एकदम फिट बैठते हैं और अपने इस रोल में उन्होंने पूरा पूरा न्याय किया है। कहा जाता है कि इस रोल के लिए तकरीबन 9 लख्मी का रिजेक्शन होने के बाद हितेश शर्मा का सिलेक्शन हुआ था। अपनी उम्दा अदाकारी, बेहतरीन डांस, बॉडी लैंग्वेज, चेहरे के हाव भाव कुल मिलाकर हितेश ने अपनी पहली ही फ़िल्म से सबको अपना दीवाना बना दिया है। हितेश शर्मा का जन्म हरियाणा फरीदाबाद के सिकरोना गाँव में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। परिवार में उनके पिताजी एजुकेशन डिपार्टमेंट में लैब असिस्टेंट पद से रिटायर्ड हुए हैं तथा माता हाऊस वाइफ़ हैं। इनके परिवार में सभी जॉब करते हैं जिनका अभिनय से कहीं भी दूर दूर तक कोई नाता नहीं है। इसलिए हितेश शर्मा अभिनय के फील्ड में एकदम नए हैं।
हितेश शर्मा जब छोटे थे तब रामलीला से बहुत प्रभावित थे। जब वह रामलीला देख कर घर आते तब अपने गार्डन में जाकर इमेजिन करते वह भगवान राम और हनुमान हैं। वह आंखें बंद करके ख़ुद को उसी रूप में मानकर घूम-घूम कर नाच-नाच कर ज़ोर से रामलीला के डायलॉग दोहराते और सोचते कि उनके हाथ मे धनुष बाण या गदा है और वह भगवान राम या हनुमान का रोल प्ले कर रहे हैं। तब उनके मन में आता कि काश मैं भी कभी रामलीला में भगवान राम का रोल करूंगा। एक साक्षात्कार में वह बताते हैं कि "मेरे बालमन पर दस दिन होने वाली रामलीला का बहुत प्रभाव पड़ता और रामलीला से ही मेरा सबसे पहले जुड़ाव हुआ। मेरा अभिनय के क्षेत्र से कोई लिंक नहीं था तब मुझे लगा कि रामलीला में अभिनय करने का 
मेरा सपना शायद पूरा नहीं होगा।
फिर मैंने स्कूल तथा स्कूल के ज़रिए बाहर होने वाले नाटकों में भाग लेना शुरु किया। उसके बाद अपने मोहल्ले के ही 'युवा शक्ति एकता मंच' के अनेक प्रोग्राम में हिस्सा लेता रहा। इस प्रकार अभिनय से मेरा जुड़ाव स्कूल टाइम से ही हो गया था।" हितेश शर्मा ने ग्रेजुएशन के बाद 2010 में मारवाह स्टूडियो में एशियन एकेडमी और फ़िल्म टेलीविजन AAFT, Noida में एक साल की एक्टिंग का कोर्स किया। उस वक़्त उन्होंने ठान लिया था कि अब वह एक्टिंग के अलावा कुछ करेंगे ही नहीं। वह बताते है कि "वहाँ से मैं सही अर्थों में प्रोफेशनली एक्टिंग से जुड़ा उससे पहले तो मैं हवा में ही तीर चला रहा था।"
2011में हितेश मुंबई चले गए, हीरो बनने। वह बताते हैं कि "उस वक्त उनके कॉलर खड़े थे और उन्हें लगा कि अब तो मैं मुंबई जा रहा हूँ हीरो बनकर ही 
० डॉ० तबस्सुम जहाँ ० 
tabijahan03@gmail.com
लौटूंगा। लेकिन जैसे ही मुंबई पहुंचा और वहाँ पहुँच के जो धक्के खाए तो पहले ही महीने में पता चल गया कि बेटा हितेश! यह सब इतना आसान नहीं है।" वह पहले सोच के गए थे कि सिर्फ़ फ़िल्में ही करुंगा सीरियल नहीं। फिर एक महीने बाद सोचा कि सीरियल मिला तो वो भी कर लूँगा। फिर कुछ वक्त सोचा कि जो कुछ मिलेगा वो भी कर लूँगा। फिर कुछ महीने बीते तब भी उन्हें काम नहीं मिला तब उन्होंने सोचा कि अगर मैं बस एक दिन ही टी वी पर दिख जाऊं तो मेरे घरवाले ख़ुश हो जाएंगे तब वह भगवान से एक दिन टी वी पर आने के लिए प्रार्थना करते कि 'हे भगवान! बस मेरी लाज रख ले और एक दिन मुझे टी वी पर दिखा दे।' पर कुछ नहीं हुआ। 

उन्होंने बहुत संघर्ष किया, हाथ पांव मारे तब भी मुंबई में काम नहीं मिला। वह वापस दिल्ली आ गए। दिल्ली आकर उन्होंने यहाँ थियेटर शुरु किया उन्हें लगता था कि वह बहुत अच्छी एक्टिंग नहीं कर पा रहे हैं। क्योंकि कई बार ऑडिशंस के दौरान उन्हें घबराहट होने लगती थी इसलिए उन्होंने थियेटर करके अभिनय से जुड़ी कमियों को दूर करके ख़ुद में आत्मविश्वास जगाने का फैसला किया। इसी बीच उनके दादा जी का स्वर्गवास हो गया तब विपरीत परिस्थितियों में भी हितेश शर्मा ने दिल्ली में पूरी शिद्दत से दो साल थियेटर किया। फिर 2013 में वापस मुंबई चले गए और फिर से वहाँ पर धक्के खाए। यहाँ तक कि ऑफिस से उनको धक्के मार कर निकाला गया। हुआ यह कि एक ऑफिस में जाकर उन्होंने सिर्फ़ इतना ही पूछा कि "क्या यहाँ ऑडिशंस चल रहे हैं?"

फिर क्या था उन लोगों ने उन्हें हाथ पकड़ कर बाहर कर दिया। हितेश शर्मा बताते हैं कि "वह जब एक दूसरे ऑफिस में गए जो एक बड़ी मशहूर कंपनी है वहाँ उन लोगों ने मुझसे कहा कि मैं वापस घर चला जाऊं, 'यहाँ करोड़पति लोगों का काम होता है', 'आपके पास पैसे हैं या नहीं?' 'यदि आपका फैमिली बैकग्राउंड स्ट्रांग है तभी आपका कुछ हो सकता है' वगैरह। उस वक्त व्हाट्सएप भी नहीं था तब ऑडिशंस वहाँ जाकर ही देना होता था। अब तो व्हाट्सएप पर या ऑनलाइन भी हो सकते हैं। फिर आजकल तो कास्टिंग एजेंसी खुल गई हैं पर उस वक़्त यह सब इतना आसान नहीं था बड़ी मेहनत करके चीज़े मिलती थी ख़ासकर ऑडिशंस वाली जगह। अगर मुझे किसी ने बताया कि कनाटप्लेस में ऑडिशंस हो रहे हैं तो उस वक़्त मुझे पूरा ही कनाटप्लेस छानना पड़ता। डोर टु डोर जाकर ऑडिशंस वाली जगह ढूँढनी पड़ती और यह सब बहुत थकाने वाला होता। तब मैं नया था और मेरे पास कुछ लिंक्स भी नहीं थे। ऐसे में कई लोग मुझे डांट देते, भगा देते, कहते यहाँ नहीं वहाँ जाओ। तब मैं एक बुक लेकर आया उसमें डायरेक्टर एक्टर और प्रोड्यूसर के नम्बर थे मैनें उनको फोन करना शुरु किया।"
अपनी अभिनय की यात्रा के संदर्भ में पूछे जाने पर हितेश शर्मा बताते हैं कि अभिनय ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया है। 2010 से 2022 तक उन्हें ज़िंदगी जीना आ गया है। यह अच्छे से पता चल गया कि वास्तव में संघर्ष होता क्या है। वह कहते हैं कि असल में अभिनय ने उन्हें संर्घष करना सिखाया है वरना वह भी कहीं कोई जॉब कर रहे होते और शायद बहुत ही संतुष्टि वाली ज़िंदगी जी रहे होते। लेकिन आज उन्हें जीवन जीना आ गया है। कितनी कितनी चीज़े समझ आ गई हैं कि सफलता पाने के लिए...आपको अपनी मनपसंद सफ़लता पाने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है। धैर्य रखना पड़ता है, जोश रखना पड़ता है, जज़्बा रखना पड़ता है यह सब इस अभिनय की यात्रा ने ही उन्हें सिखाया है। किसी भी काम के लिए जुनून होना बहुत ज़रूरी है।

दादा लख्मी फ़िल्म के विषय मे हितेश शर्मा बताते हैं कि वह दादा लख्मी फ़िल्म के निर्देशक यशपाल सर से पहली बार मुंबई में मिले थे। रविन्द्र राजावत सर में उन्हें सर से मिलवाया था। यशपाल सर ने उनसे पहला सवाल यही पूछा कि 'आपको डांस आता है' उनका जवाब था कि "मैं फ़िलेक्सिबल हूँ डांस कर सकता हूँ। तब सर ने बोला कि फिलेक्सिबलिटी नहीं चाहिए हमें डांस चाहिए।" तब उन्होंने उनको अपने डांस के कुछ वीडियो बना कर भेजे। जो शायद उनको वीडियो पसंद नहीं आए। तब उन्होंने अपने गुरु श्री राम जी बाली के कहने पर दुबारा से वीडियो बना कर भेजे जो उनकी नज़र में थोड़े ठीक ठाक थे। कुछ समय बाद उन्होंने तीसरी वीडियो बना कर भेजा तब भी कोई जवाब नहीं मिला। फिर उन्होंने चौथी बार यू ट्यूब से कुछ हरियाणवी डांस स्टैप सीखे और एक नया वीडियो बनाकर भेजा। ऐसा करते करते उन्होंने तकरीबन छह महीने में 8 से 10 वीडियो बनाकर भेजे तब कहीं जाकर यशपाल सर का रिस्पॉन्स आया 'मच बैटर'। वह आगे बताते है कि "तब सर ने उनसे अपने काम के लिंक शेयर करने को कहा।

 जब वह दिल्ली ट्रेन से आ रहे थे तब अचानक यशपाल सर का मैसेज आया कि वह उनको अपने फोटो भेजें। तब मैंने उनको फोन करके बताया कि मैं दिल्ली आ रहा हूँ। सर ने कहा कि मैं दिल्ली में द्वारका आकर उनसे मिलूं। मैं उनसे दिल्ली में मिला जहां उन्होंने कुल मिलाकर अलग-अलग छह ऑडिशंस लिए। इतना ही नहीं मुझे 100 लोगों के सामने डांस करने को कहा गया। तब भी मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ। उसके कुछ दिन बाद मुझे पता चला कि मेरा सिलेक्शन हो गया है। मुझसे कहा गया कि शूटिंग के दौरान अगर मेरा काम स्तरीय नहीं लगा तो मुझे हटा दिया जाएगा क्योंकि उनको फ़िल्म के लिए जो बेस्ट होगा वो करना था बेशक आप उसमें हों या न हों। पर भाग्य कहिए या कुछ और फाइनली मुझे दादा लख्मी का रोल मिल गया।"

हितेश शर्मा ने दादा लख्मी फ़िल्म की सफलता के विषय बताया कि दादा लख्मी फ़िल्म को अभी तक नेशनल अवार्ड समेत 78 नेशनल इंटरनेशनल फ़िल्म ने अभी नेशनल अवार्ड मिल चुके हैं। 'कांस' में भी इसे दिखाया गया है। इस फ़िल्म में उनका रोल यंग लख्मी का है। दादा लख्मी फ़िल्म इतना सफल हुई है कि यह फ़िल्म हरियाणा ही नहीं बल्कि विश्व मे हलचल मचा सकती है ऐसा उनका विश्वास है। जो कोई भी इस फ़िल्म को देख कर निकल रहा है वो इसकी प्रशंसा करते नहीं थक रहा है। फ़िल्म सीधे सीधे सबके दिल में उतर रही है। बच्चे, यंग जेनरेशन, बुज़ुर्ग सभी को यह फ़िल्म पसंद आ रही है। सभी फ़िल्म को देख कर बहुत भावुक हो रहे हैं। सिनेमा हॉल से फ़िल्म देख कर निकले लोगों की आंखें नम हैं। इस फ़िल्म को लोगों का इतना ज्यादा प्यार मिल रहा है जो हमारे लिए किसी अवार्ड से कम नहीं है।

 फ़िल्म से लोग खुद का जुड़ाव महसूस कर रहे हैं। लोग बार बार फ़िल्म देखने आ रहे हैं। हितेश के अनुसार "किसी फ़िल्म से लोगों का भावनात्मक जुड़ाव मैंने पहली बार देखा है। जब आम पब्लिक हमारे साथ है तब हमारी जीत पक्की है।" दूसरे, हरियाणा में बहुत समय बाद ऐसी लहर आई है। रिलीज़ होने से लेकर अब तक हमारी फ़िल्म हाउसफ़ुल रही है। पब्लिक का आउट ऑफ कंट्रोल प्यार इस फ़िल्म को मिल रहा है। इस फ़िल्म की सफलता का डंका बॉलीवुड तक बजने लगा है। उन्हें मुंबई से फोन आ रहे हैं कि आपकी फ़िल्म हिट हो चुकी है बधाई हो। बड़े-बड़े डायरेक्टर उन्हें फोन कर रहे हैं। इसका सकारात्मक नतीजा यह होगा कि अब बॉलीवुड भी हरियाणा की तरफ रुख करेगा। हरियाणा स्टेज एप और हरियाणवी के सिनेमा से जुड़े लोग भी अब आगे और भी बेहतर करने की ओर प्रेरित होंगे। सच कहें तो दादा लख्मी फ़िल्म ने हरियाणवी सिनेमा जगत का परिदृश्य बदल दिया है।

हितेश शर्मा ने यंग दादा लख्मी का रोल करने से पहले दादा लख्मीचंद के बारे में अधिक से अधिक रिसर्च करना शुरु किया। उन्होंने दादा लख्मीचंद के जीवन ने जुड़ी अनेक किताबें पढ़ी। क्योंकि फ़िल्म ग्रामीण परिवेश पर आधारित थी इसलिए उन्होंने गाँव के परिवेश को अच्छे से समझने के लिए गाँव गाँव घूमना शुरु किया। दादा लख्मीचंद जी के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी प्राप्त की। उन्होंने यह भी जाना कि आम आदमी उनके बारे में क्या सोचता है? आम आदमी के सामने दादा की छवि क्या थी? हितेश बताते हैं कि शूटिंग से एक महीने पहले उन्होंने धोती-कुरता पहनना शुरु कर दिया था। उनकी बोलचाल की शैली फरीदाबाद क्षेत्र की है इसलिए डायलॉग डिलीवरी के लिए सोनीपत की बोलचाल में खुद को ढालने लगे। जिसमे लिए उन्होंने उस इलाके के लोगों के साथ रहना शुरु किया। 

उन्होंने डांस की प्रैक्टिस करना शुरु की और तक़रीबन 16-16 घण्टे डांस की रिहर्सल करने लगे। इसके लिए उनके दोस्त पंकज, साहिल और रोहित ने भी उनकी ख़ूब मदद की। वह दादा लख्मी की स्क्रिप्ट को रोज़ 20-20 बार पढ़ते थे ताकि उसका एक एक शब्द आत्मसात कर सकें। हितेश शर्मा ने दादा लख्मी की शूटिंग से फ्री होकर भाभी जी घर पर हैं' सीरियल में काम करना शुरु किया था लेकिन बाद में उनको मना कर दिया क्योंकि दादा लख्मी का प्रमोशन शुरु हो गया था। उनके अनुसार, "जब तक हमारी फ़िल्म सिनेमा हॉल में लगी है और उसका प्रमोशन करना है तब तक मैं कोई भी नया प्रोजेक्ट नहीं करुंगा। अभी मेरे लिए दादा लख्मी फ़िल्म ही सब कुछ है। मैं बहुत खुशनसीब हूँ जो मुझे दादा लख्मी फ़िल्म में काम करने का अवसर मिला है। दादा लख्मी फ़िल्म बहुत बड़ी हिट साबित हुई है। यह ईश्वर का आशीर्वाद है आगे भी उसने मेरे लिए कुछ बेहतर ही सोचा होगा।

टिप्पणियाँ

anwar suhail ने कहा…
बेहतरीन चर्चा। फिल्म देखने की ललक मन में ज़ोर कर रही है।

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