नए संसद भवन उद्घाटन को लेकर पक्ष विपक्ष आमने समाने

० विनोद तकियावाला ० 
नयी दिल्ली - विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की राजनीति की चर्चा इन दिन देशो में नही वरन अर्न्तराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञो व पंडितों के चर्चा व चिन्तन का केन्द्र बना हुआ है। केंद्र सरकार द्वारा नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में देश के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्म को निमंत्रण नही देने से 20 राजनीतिक दलों ने बहिष्कार करने की घोषणा की है। इनका का कहना है कि नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति को निमंत्रण नही दिया है। सरकार का यह कदम लोकतंत्र की हत्या करने जैसा है।

सबसे पहले नए संसद भवन के बारे जानने की कोशिस करते है। 862 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाला नव र्निमित संसद भवन तैयार हो गया है,जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोकसभा स्पीकर ओम बिरला 28 मई को करेंगे। ये दिल्ली के लुटियन्स में तिकोने आकार में बना नया संसद भवन चार मंजिला है।जिसे सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत बनाया गया है।सीटों की हिसाब से देखें तो नए संसद भवन के लोकसभा में 888 सांसदों की बैठने की व्यवस्था है।राज्यसभा में 384 सांसद बैठ सकेंगे।दोनों सदनों के संयुक्त बैठक में कुल 1280 सांसद एक साथ बैठ सकेंगे।नया संसद भवन भूकंप रोधी बनाया गया है और इसके फर्श का कलर धूसर हरा
(ग्रे-ग्रीन) है।संसद की नई बिल्डिंग 64 हजार 500 वर्ग मीटर में बनाई गई है।संसद में 3 द्वार बनाए गए हैं,इन्हें ज्ञान द्वार,शक्ति द्वार और कर्म द्वार नाम दिया गया है।संसद के भीतर प्रधानमंत्री,स्पीकर और नेता प्रतिपक्ष के ऑफिस को हाईटेक बनाया गया है।इसके लिए कमेटी की मीटिंग रूम भी काफी उच्तस्तरीय बनाया गया है।नए संसद भवन में साउंड क्वालिटी और माइक भी बेहतर क्वालिटी के लगाए गए हैं।

आप के मन में प्रशन उठ रहा होगा कि आखिर नएसंसद बनाने की जरुरत क्यों पड़ी।हम आप को याद दिला दे कि भारत का वर्तमान संसद साल 1927 में ब्रिटिश शासन के दौरान बनाया गया था।पुराने संसद के लोकसभा में सिर्फ 590 सांसदों के ही बैठने की व्यवस्था थी।सरकार का कहना था कि संसद का पुरानी बिल्डिंग सुरक्षा की दृष्टि से खराब हो चुका है।दुसरी बात यह कि 2026 में लोकसभा की सीटों का परिसीमन होना है और संख्या में काफी बढ़ोतरी हो सकती है।ऐसे में नई बिल्डिंग की जरुरत थी। वर्तमान ससंद भवन के मूल डिजाइन का कोई रिकॉर्ड या दस्तावेज नहीं है।जिससे इसका संशोधन काफी मुश्किल हो गया था।इस सबको ध्यान में रखकर सरकार ने बिल्डिंग बनाने का ऐलान किया।

नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह को लेकर सता पक्ष व विपक्ष में ताना तानी है।इस संदर्भ में कांग्रेस,डीएमके और तृणमूल समेत 20 दलों द्वारा एक साझा बयान जारी कर कहा गया है कि वे नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में भाग नही लेगें।उनका कहना है कि संविधान में राष्ट्रपति को संसद का अभिन्न अंग माना गया है।इसके अलावा वे राज्य(राष्ट्र)प्रमुख भी होते हैं।ऐसे में उन्हें नए संसद भवन के उद्घाटन में नहीं बुलाना लोकतंत्र के लिए सही नहीं है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने राष्ट्रपति के न बुलाने को संवैधानिक पद का अपमान बताया हैIराहुल ने ट्वीट कर कहा- संसद अहंकार की ईंटों से नहीं,बल्कि संवैधानिक मूल्यों से बनती है।वही इस पर अपनी प्रक्रिया देते हुए संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने बहिष्कार करने के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। सरकार के पक्ष को मजबुत करने के लिए

केन्द्र सरकार के मंत्री हरदीप सिंह पुरी समाने आ गये । उन्होनें कहा कि इससे पहले शिलान्यास-उद्घाटन का कार्यक्रम इंदिरा और राजीव कार्यकाल का हुआ है। उन्होंने उदाहरण देते हुए विपक्ष को घेरने की कोशिश की हैIभारत में आजादी के बाद से ही उद्घाटनऔर शिलान्यास में राष्ट्रपति के अधिकारों पर प्रधानमंत्री का वीटो लगता रहा है।इण्डिया गेट पर शहीद की यादें में अमर ज्योति जवान स्मारक का 21जनवरी

1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसका उद्घाटन किया था।उस समय वीवी गिरी देश के राष्ट्रपति थे।विपक्षी नेताओं का कहना था कि राष्ट्रपति तीनों सेना के प्रमुख होते हैं,इसलिए उनसे इसका उद्घाटन करवाना चाहिए था।बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के लिए पाकिस्तान पर भारत ने कार्रवाई की थी।13 दिनों तक चले इस युद्ध में भारत 3,843 जवान शहीद हुए थे।इसके बाद अमर ज्योति बनाने का सरकार ने फैसला किया था।उस समयअमर ज्योति जवान के उद्घाटन पर सवाल भी उठा था,

लेकिन युद्ध की वजह से मामला दब गया।(2)दिल्ली मेट्रो का उद्घाटन दिसंबर 2002 में राष्ट्रीय राजधानी में मेट्रो का उद्घाटन होना था।शहरी विकास मंत्रालय ने इसके लिए प्रधानमंत्री को आमंत्रण भेज दिया।उस वक्त एपीजे अब्दुल कलाम आजाद राष्ट्रपति थे।राष्ट्रीय राजधानी होने की वजह से दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश है और यह सीधे राष्ट्रपति के अधीन होता है।उपराज्यपाल राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के तौर पर सरकार को मॉनिटरिंग करते हैं।फाइनल मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास फाइलें भेजी जाती है।दिल्ली मेट्रो के उद्घाटन के राष्ट्रपति के सर्वेसर्वा होने दलील दी गई थी। उस वक्त विपक्षी नेताओं का कहना था कि दिल्ली में राष्ट्रपति से ही मेट्रो का उद्घाटन करवाना चाहिए ।(3)नेशनल वॉर मेमोरियल का

उद्घाटन-2019 में इंडिया गेट स्थित अमर जवान ज्योति के पास नेशनल वॉर मेमोरियल बनकर तैयार हुआ। उस वक्त चर्चा थी कि राष्ट्रपति इसका उद्घाटन करेंगे,लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर दिया।उस वक्त रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति थे।शिवसेना नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने प्रधानमंत्री से उद्घाटन कराए जाने का विरोध भी किया था।उनका तर्क था कि राष्ट्रपति सभी सेनाओं के प्रमुख होते हैं,इसलिए सैन्य से जुड़े चीजों का उद्घाटन उन्हें ही करना चाहिए.

वॉर मे मोरियल में 27 हजार शहीद जवानों का भी नाम लिखा है।इसके भीतर 21 परमवीर चक्र विजेताओं की मूर्ति भी बनाई गई है।वहीं युद्ध से जुड़ी यादों को भी वॉर मेमोरियल में रखा गया है।7अक्टूबर 2015 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय राजधानी के लुटियंस जोन के भीतर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक और संग्रहालय के निर्माण को मंजूरी दी थी,जिसके बाद इंडिया गेट और अमर ज्योति जवान को ध्यान में रखते हुए गेट के पूर्व भाग में इसका निर्माण किया गया।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 79 में कहा गया है कि भारत में एक संसद होगी,जिसमें राष्ट्रपति और दो सदन (राज्यसभा और लोकसभा)होंगे। राष्ट्रपति को संसद सत्र आहुत, सत्रावसान करना एवं लोकसभा को भंग करने की शक्ति भी है। राष्ट्रपति के पास लोकसभा के लिए आंग्ल भारतीय समुदाय से 2 सदस्य तथा राज्यसभा के लिए कला, साहित्य,विज्ञान,समाज सेवा क्षेत्र के 12 सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार है।यानी भारत के राष्ट्रपति संसद के मजबूत स्तंभ हैं। 2020 में नई बिल्डिंग का शिलान्यास किया गया था।उस वक्त राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद थे और उन्हें नहीं बुलाया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका शिलान्यास किया था। संविधान में प्रधानमंत्री सिर्फ कार्यपालिका प्रमुख हैं।

ऐसे में माना जा रहा था कि संसद का उद्घाटन राष्ट्रपति के हाथों कराया जाएगा,लेकिन बीते दिनों जब लोकसभा सचिवालय ने प्रधानमंत्री को आमंत्रित कर दिया।राहुल गांधी ने लोकसभा सचिवालय के आमंत्रण को राष्ट्रपति के अपमान से जोड़ दिया। इसी के बाद विपक्ष सरकार के खिलाफ लामबंद हो गई ।पहले बयान और फिर एक साझा चिट्ठी जारी कर इसका बहिष्कार करने की घोषणा कर दी है ।इस बीच कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा है।उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को कहा कि आपकी सरकार के अहंकार ने संसदीय प्रणाली को ध्वस्त कर दिया है ।

खरगे ने ट्वीट कर लिखा कि मोदी संसद जनता से स्थापित लोकतंत्र का मंदिर  राष्ट्रपति का पद संसद का प्रथम अंग है।आपकी सरकार के अहंकार ने संसदीय प्रणाली को ध्वस्त कर दिया है।इसके साथ ही उन्होंने सवाल पूछा कि 140 करोड़ भारतीय जानना चाहते हैं कि भारत के राष्ट्रपति से संसद भवन के उद्घाटन का हक छीनकर आप क्या जताना चाहते हैं ?उन्होंने कहा था कि लगता है।मोदी सरकार ने केवल चुनावी लाभ के लिए दलित और आदिवासी राष्ट्रपति बनाया है। सपा की मदद से राज्यसभा पहुंचे पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने इस मसले पर एक ट्वीट कर इसके उद्घाटन को लेकर सवाल उठाए हैं.

पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने अपने ​ट्वीट में लिखा है कि संसद हमारे गणतंत्र का प्रतीक है। राष्ट्रपति गणतंत्र का प्रमुख होता है।इस औपचारिक आयोजन में राष्ट्रपति की अनुपस्थिति हमारे गणतंत्र के लोकाचार का अवमूल्यन करने के बराबर है। उन्होंने केंद्र से सवालिया लहजे में पूछा है कि क्या सरकार को इस बात की परवाह है!कपिल सिब्बल अपने ट्वीट के जरिए अहम सवाल उठाए हैं।गृह मंत्री अमित शाह ने एक दिन पहले बुधवार को नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर प्रेस वार्त्ता की थी।

इसके साथ ही शाह ने उद्घाटन पर विपक्ष के बहिष्कार को लेकर कहा कि आप इसे राजनीति के साथ मत जोड़िए Iसब अपने विवेक के हिसाब से काम कर रहे हैं। विश्व के सबसे बडे लोकतंत्र के मन्दिर नव र्निमित संसद भवन के उद्घाटन समारोह के शुभ मुहूर्त में सरकार - विपक्ष की आपसी रंजिस से भारतीय राजनीति की छवि विश्व की राजनीति मानचित्र पर धुमिल होगी !जो प्रत्येक प्रत्येक भारतीय के लिए चिन्ता का विषय बन सकता है।

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