आपातकाल में प्रेस पर पाबंदी के खिलाफ एनयूजे ने निभाई थी बड़ी भूमिका - रास बिहारी

० योगेश भट्ट ० 
आपातलकाल के पहले पांच महीने में इंदिरा सरकार के अत्याचारों के कारण देश हिल गया था। इसके बाद भय को मिटाने के लिए संघ के स्वयंसेवकों ने भूमिगत होकर आपातकाल के विरोध में कार्य किया। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि क्रांतिकारी माओवादी नेता और कार्यकर्ताओं ने भी आपातकाल में सरकार और पुलिस के मुखबिरों की भूमिका निभाई थी। जेल में बंद माओवादी नेता गिरफ्तार नेताओं की जासूसी करते थे।
नई दिल्ली। वरिष्ठ पत्रकार, लेखक तथा हिन्दुस्थान समाचार के प्रधान संपादक रामबहादुर राय ने एनयूजेआई स्कूल ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन तथा दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन द्वारा आपातकाल और प्रेस विषय पर आयोजित संगोष्ठी में खुलासा किया कि कांग्रेस के नेता व कार्यकर्ता आपातकाल के दौरान पुलिस के मुखबिर बन गए थे। आपातकाल के दौरान 16 महीने जेल में बंद रहे राय ने बताया कि कांग्रेस के नेताओं के दबाव में तमाम लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाला गया था।

 उन्होंने यह भी खुलासा किया कि आचार्य विनोवा भावे ने कभी नहीं कहा था कि आपातकाल अनुशासन पर्व है। कांग्रेसी नेता निर्मला देशपांडे द्वारा फैलाए गए झूठ का विनोबा भावे आपातकाल में व्याप्त भय के कारण विरोध नहीं कर पाए  दिल्ली में आयोजित संगोष्ठी में वरिष्ठ पत्रकार, आईटीवी के संपादकीय निदेशक डॉ.आलोक मेहता, पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर समेत कई पत्रकारों ने अपने विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी की अध्यक्षता नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स के अध्यक्ष रास बिहारी ने की।

 राय ने संगोष्ठी में बताया कि आपातकाल का केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने ही जमकर विरोध किया था। इंदिरा गांधी के खिलाफ आंदोलन के अगुआ जयप्रकाश नारायण गिरफ्तारी के बाद छाये सन्नाटे से हताश हो गए थे। जेपी को उम्मीद थी कि उनकी गिरफ्तारी के बाद पटना समेत देशभर में भारी विरोध होगा। पर देश में पूरी तरह सन्नाटा छा गया। उन्होंने बताया कि जेपी ने जेल में एक महीने बाद अपनी डायरी लिखना शुरू किया था। 

जेपी आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाने वाले रामबहादुर राय ने कहा कि इंदिरा गांधी के विरोध में जेपी आंदोलन में सत्ता बदलने का दम नहीं था। उन्होंने कहा कि जेलों में ऐसा माहौल था कि आपातकाल कभी समाप्त नहीं होगा और परिवार के लोगों से इस जन्म में भेंट नहीं होगी।  इंदिरा गांधी ने यह सोचकर जनवरी 1977 में लोकसभा चुनाव की घोषणा की थी कि आपातकाल में जनता उनके निर्णय पर मोहर लगा देगी। उन्होंने बताया कि इंदिरा गांधी ने दार्शनिक जे कृष्णमूर्ति, 

 कांग्रेस नेता ओम मेहता और कई अन्य लोगों की राय पर चुनाव कराए थे। इंदिरा गांधी की सोच थी कि आपातकाल में चुनाव करा कर, वह फिर जीत जाएंगी, लेकिन जनता ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया।’
 इंदिरा गांधी ने केवल प्रधानमंत्री बने रहने के लिए ही आपातकाल घोषित किया था। इंदिरा गांधी को अगर सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल जाती तो आपातकाल भी नहीं थोंपा जाता। इसके लिए इंदिरा गांधी ने सभी लोकतांत्रिक अधिकारों को हनन किया।

आईटीवी के संपादकीय निदेशक आलोक मेहता ने कहा इस समय पत्रकारों के बीच यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि देश में आपातकाल जैसी स्थिति है। उन्होंने कहा कि आज भी मीडिया को पूरी स्वतंत्रता है कि वह तथ्यों के आधार पर समाचारों का प्रकाशन करें। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी कहा करती थी कि हमें जयप्रकाश के आंदोलन से उतना खतरा नहीं है जितना अखबारों से है।  मेहता ने कहा कि आपातकाल के दौरान झुग्गी हटाने, श्रमिकों को बोनस का भुगतान न होने और गोदावरी जल संकट तक की खबरें लिखने पर भी पाबंदी थी। सरकारी अधिकारी और दरबारी राजा से बढ़ कर वफाद़ार बन गए थे।

 आपातकाल के दौरान लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए पत्रकारों ने बड़ी भूमिका निभाई थी। इसी कारण तमाम पत्रकारों को इंदिरा सरकार की नाराजगी झेलनी पड़ी। इंदिरा सरकार ने प्रेस को कुचलने के लिए सेंसरशिप का पूरी तरह दुरुपयोग किया। सरकारी अधिकारी और दरबारी राजा से बढ़ कर वफाद़ार बन गए थे। आपातकाल ने एक बड़ा सबक यह दिया है कि अब कोई भी सरकार इस बारे में सोच भी नहीं सकती है। इंदिरा ने ब्रांड बनने के लिए देश का बैंड बजाया: हितेश शंकर

पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर ने कहा कि महत्वपूर्ण यह है कि आपातकाल को देखने की मीडिया की दृष्टि क्या है?” उन्होंने कहा कि आपातकाल की घोषणा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी को छह वर्ष के लिए अयोग्य ठहराने के निर्णय निर्णय के बाद की गई। इसके बीज 1967 में ही पड़ गए थे, जबकि प्रसिद्ध गोलकनाथ बनाम पंजाब सरकार मामले में उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी कि व्यक्तियों के मूलभूत अधिकारों पर अंकुश नहीं लगा सकती।

 हितेश शंकर ने कहा कि श्रीमती गांधी के सत्ता में आने के बाद बैंकों का राष्ट्रीयकरण, प्रिवी पर्स की समाप्ति, तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वरा प्रतिबद्ध न्यायपालिका और नौकरशाही की जरूरत पर जोर दिया जाना तत्कालीन शासकों की मानसिकता दर्शाता था। उन्होंने कहा कि केशवानंद भारती मामले में पुन: न्यायालय की इस व्यवस्था से किस संविधान के मूल ढांचे में बदलाव नहीं किया जा सकता। उसके बाद संविधान को शासकों की मर्जी के अनुसार ढालने का प्रयास तेज हो गया। जो परिवार के आगे नहीं झुक रहे थे, उन्हें झुकाने की कोशिशें की गयी।

 आपातकाल के दौरान दो सौ से ज्यादा पत्रकारों को गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया गया था। उन्होंने कहा कि आपातकाल के बाद हुए आम चुनावों ने यह तय कर दिया था कि यह देश सत्ता की सनक से नहीं बल्कि संविधान से चलाया जाता है।आपातकाल में प्रेस पर पाबंदी के खिलाफ एनयूजे ने निभाई थी बड़ी भूमिका- रास बिहारी संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए एनयूजेआई के अध्यक्ष रास बिहारी ने कहा कि आपातकाल में एनयूजेआई के नेताओं ने प्रेस पर पाबंदी के खिलाफ बड़ी भूमिका निभाई थी। कई नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। बड़ी संख्या में सदस्यों की मान्यता रद्द कर दी गई। कई पत्रकारों को नौकरी से निकाल दिया गया।

रासबिहारी ने देश में मीडिया पर अघोषित आपातकाल को भ्रम फैलाने की साजिश बताते हुए कहा कि मीडिया के सामने हर समय चुनौती रहेंगी। मीडिया संस्थानों में मालिकों की मनमानी हावी है और आज सम्पादक मैनेजर हो गए है। जिस मीडिया प्रतिष्ठान को दिल्ली में भाजपा का समर्थक कहा जाता है, उसे पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भोंपू बताया जाता है। सत्ता के बारे में तथ्यों के आधार पर समाचार लिखने वालों को परेशानी उठानी पड़ सकती है पर उन्हें चुप नहीं कराया जा सकता है। उन्होंने कहा कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार हो या बिहार की नीतीश कुमार सरकार, उनकी आलोचना करने पर विज्ञापन बंद कर दिए जाते हैं। ऐसा हाल कई राज्यों में है। उन्होंने कहा कि मालिकों द्वारा समाचार छापने या न छापने के कारण ही अघोषित आपातकाल का भ्रम फैलाया जाता है।

दिल्ली पत्रकार संघ के संयोजक राकेश थपलियाल ने संगोष्ठी का संचालन करते हुए मीडिया से जुड़े मुद्दो को उठाया। एनयूजेआई के सचिव अमलेश राजू ने धन्यवाद ज्ञापन में कहा कि मीडिया के एकजुट होकर काम करने की आवश्यकता है। संगोष्ठी में संसद टीवी के वरिष्ठ एंकर मनोज वर्मा, अमरेंद्र गुप्ता, यूनीवार्ता के ब्यूरो प्रमुख मनोहर सिंह, वरिष्ठ पत्रकार उषा पाहवा, प्रतिभा शुक्ल, ज्ञानेंद्र सिंह, विवेक शुक्ल, दीपक उपाध्याय आदि ने बड़ी संख्या में पत्रकारों ने हिस्सा लिया

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