पुस्तक-अनुबंध : उपन्यास गुजरात के एक परिवार पर केंद्रित

० पुस्तक-अनुबंध  ० लेखक कर्नल सीएम नौटियाल ० प्रकाशक श्री नटराज प्रकाशन, गामड़ी एक्सटेंशन दिल्ली ० मूल्य ₹ 650 ० पेज 312 ० समीक्षक योगेश भट्ट ० 
कर्नल सीएम नौटियाल 14 नवंबर 1943 को उत्तराखंड में जन्मे बीए ऑनर्स एलएलबी एमबीए की शिक्षा में पारंगत होने के साथ-साथ सेना से सेवानिवृत्त तत्पश्चात मल्टीनेशनल कंपनी के महाप्रबंधक व भारतीय जनता पार्टी उत्तराखंड के प्रदेश संयोजक के पद को सुशोभित करने के बाद वर्तमान में उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में रहकर साहित्य साधना में पूर्णरूपेण रत हैं साहित्य साधना के प्रति स्वरूप अभी तक उनकी रचनाओं में वतन उपन्यास वही बाकी निशा होगा पर्वत रोते हैं कहानी संग्रह हिमशिखर काव्य संग्रह पुष्पांजलि डांडी कांठी गीतों की रचनाओं सहित 15 से अधिक किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं

 कर्नल सीएम नौटियाल का अनुबंध उपन्यास जो कि 13 अध्यायों में विभक्त है विशेषकर देव भूमि उत्तराखंड के चार धामों के प्रति लोगों की आस्था विश्वास प्रेरणा एवं लगाव के सरोकारों को छूते हुए समय के अनुरूप उत्तराखंड के दर्शन करवाते हैं इसी कड़ी में सन 2013 में केदार की आपदा पर केंद्रित होकर यह उपन्यास उसके दुष्प्रभाव एवं उससे उपजी नई संस्कृति सभ्यता आस्था एवं विश्वास पर केंद्रित होकर आशा की एक नई किरण जो जाखिनी गांव के रूप में पाठकों के सामने उभर कर आता है जिसका अस्तित्व आज भी केदारघाटी में स्थित है पूरा उपन्यास गुजरात के एक परिवार पर केंद्रित है

 जो कि सन 2013 में अन्य तीर्थ यात्रियों के साथ-साथ चार धाम की यात्रा पर देवभूमि उत्तराखंड आए थे और केदार की आपदा में अपनों को खो चुके बाकी जो बचे जिनका कोई अता पता नहीं ऐसी स्थिति में मानव संवेदनाएं किस तरीके से मनुष्य के अंदर प्रकट होती हैं और क्या क्या सोचने के लिए मजबूर होती हैं इन परिस्थितियों में जीवन कैसे आगे बढ़े निकले उसके लिए जो संघर्ष जीवन और मृत्यु के बीच है यह उपन्यास बखूबी चित्रण करता है ऋतंभरा जो कि पूर्व में दूसरे नाम से जानी जाती है 

इस आपदा में उसकी याददाश्त का जाना उसके जीवन का समूचा संघर्ष गांव के प्रदीप का जंगल में बदहवास स्थिति में उससे मिलना उसे अपने घर लाना समाज की अनुमति लेना कई ऐसे मार्मिक चित्र जो हमें अंदर तक झकझोर देते हैं मानवीय संवेदनाओं के जो सटीक प्रमाण भी है अनुबंध उपन्यास की सार्थकता इस बात पर भी केंद्रित है के लेखक का समूचा सोच अध्ययन चिंतन उत्तराखंड की संस्कृति पर केंद्रित नजर आता है जो कि एक फल काफल जिसे हम अमृत फल भी कहते हैं पर्यावरण के संवर्धन करने की दिशा मैं पूर्ण सहायक होता है 

जो कि एक अनुबंध के तौर पर दूसरे साथी को दिया जाता है उपन्यास के माध्यम से देवभूमि के चारों धामों की पवित्रता जो हमारे धार्मिक स्थल भी हैं उनकी धार्मिक मान्यताओं को बरकरार रखने पर जोर देते हैं जिससे कि भविष्य में इस प्रकार की आपदाएं ना घटित हो यह संदेश समूचे देशवासियों के लिए भी है कि धार्मिक स्थलों की मर्यादा मान्यताओं का हर समय पालन किया जाए अन्यथा प्रकृति समय-समय पर केदार के माध्यम से ऐसी आपदाओं का निमंत्रण देती रहती है जो कि मानव समाज व सभ्यता के लिए बहुत ही भयावह स्थिति होगी 

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