विकास के लिए जनसंख्या दर को कम करना होगा

० लाल बिहारी लाल ० 
आज सारी दुनिया की 90% आबादी इसके 10% भू-भाग पर निवास करती है। विश्व की आबादी कहीं 11-50/वर्ग कि.मी. है तो कहीं 200 वर्ग कि.मी.है। इसके कई कारण है जो जनसंख्या वृद्धि को प्रभावित करते हैं। उनमें भौगोलिक, आर्थिक एवं सामाजिक तथा सांस्कृतिक कारक प्रमुख है। भोगोलिक कारकों में मुख्य रुप से मीठे एवं सुलभ जल की उलब्धता, समतल एवं सपाट भूआकृति, अनुकुल जलवायु ,फसल युक्त उपजाऊ मिट्टी आदी प्रमुख है।

आर्थिक कारकों में खनिज तत्व की उपलब्धता के कारण औद्योगिकरण तथा इसके फलस्वरुप शहरीकरण क्योंकि आधुनिक युग में स्वास्थ्य ,शिक्षा, परिवहन,बिजली तथा पानी आदी की समुचित उपलब्धता के कारण औद्योगिक कल-कारखाने में काम करने के लिए कर्मचारियो की जरुरत को कारण यहा की आबादी सघन होते जा रही है। इसके अलावे भी सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश उतरदायी है। उक्त कारकों के अलावे जनसंख्या वृद्दि दर भी आज काफी है।पृथ्वी पर जनसंख्या आज 800 करोड़ से भी ज्यादा है। इस आकार तक जनसंख्या को पहूँचने में शताब्दियां लगी है। आरंभिक कालों में विश्व की जनसंख्या धीरे-धीरे बढ़ी।
विगत कुछ सौ बर्षों के दौरान ही जनसंख्या आश्चर्य दर से बढ़ी है। पहली शताब्दी में जनसंख्या 30 करोड़ से कम थी। 16वी. एवं 17वी शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के बाद तीब्र गति से जनसंख्या की वृद्दि हुई और सन 1750 तक 55 करोड़ हो गई। सन 1804 में 1 अरब,1927 में 2 अरब ,1960 में 3 अरब,1974 में 4 अरब तथा 1087 में 5 अरब हो गई औऱ 2023 में 8 अरब से भी ज्यादा है । विगत 500वर्षों में प्रारंभिक एक करोड़ की जनसंख्या होने में 10 लाख से भी अधिक वर्ष लगे परन्तु 5 अरब से 6 अरब होने में 1987 से 12 अक्टूबर 1999 तक मात्र 12 साल लगे। इसी तरह 31 अक्टूबर 2011 को 7 अरब हो गई। आज विश्व की जनसंख्या मार्च 2021 तक 7 अरब 40 करोड के आस पास थी। परन्तु 8 जुलाई 2021 को संध्या 5 बजे तक विश्व की जनसंख्या 7,43,48,56,776 थी। औऱ जुलाई 2023 तक संयुक्त राष्ट्र विश्व जनसंख्या रिपोर्ट के अनुसार 800
करोड से भी ज्यादा पहुंच चुकी है।

भारत आज 142.9 करोड से अधिक आबादी के साथ चीन से भी आगे निकल चुकी है। आज जनसंख्या के मामले में चीन दूसरे नंबर पर है । चिंता की बात है कि जहां 1951 में हिंदूओं की प्रतिशत संख्या लगभग 85 थी जो 2011 में 80 प्रतिशत के आस पास रह गई जबकि 1951 में मुस्लिमों की आबादी लगभग 10 प्रतिशत थी तो 2011 में लगभग 15 प्रतिशत हो गई। जबकि भूमि के मामले में भारत विश्व का 2.5% है,पीने के पानी को मामले में 4 % और आबादी लगभग 20 % है। इस जनसंख्या विस्फोट से समाजिक ढ़ाचा परिवहन,शिक्षा स्वास्थ्य, बिजली , पानी आदी की मात्रा सीमित है जो समस्या बनेगी। इससे प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा और अनेक समस्याय़े खड़ी हो जायेगी। जिससे देश में सामाजिक ढाचा छिन्न-भिन्न(असहज) होने की संभावना बढ़ेगी। अतः आज जनसंख्या रोकने के लिए।सबको शिक्षा होनी चाहिये जिससे इसे कम करने में मदद मिलेगी शिक्षा के साथ-साथ जागरुकता की सख्त जरुरत है ताकि देश उनन्ति के मार्ग पर तेजी से आगे बढ़ सके।

भारत में जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए 1960 में विशेषज्ञ समिति में बात चलाई थी पर कुछ खास नहीं हुआ । भारत में सबसे पहले 1976 में जनसंख्या नीति बनी औऱ 1981 में संशोधन हुआ । फिर 1996 में काहिरा माडल आपनाया गया जिसके तहत जनता पर दबाव नहीं डाला जायेगा लेकिन शिक्षा के माध्यम से जनसंख्या रोकने का प्रयास किया जायेगा। कलांतर में 2000 में महान वैज्ञानिक एम.एस .स्वमीनाथन की अध्यक्षता में गठित कमिटी की रिपोर्ट के आधार पर राष्ट्रीय जनसंख्या स्थिरता कोष की स्थापना की गई। कई कोशिशों के बावयूद भी चीन की जनसंख्या से भारत की जनसंख्या दर तीन गुणी अभी भी है। इसे रोकना ही होगा। जनसंख्या वृद्धि से होने वाले कारणों को जनता के बीच ले जाना होगा तभी इस समस्या से छुटकारा मिल सकता है ।इसके लिए सरकार को कुछ सख्ती बरतना ही होगा। तभी इस विस्फोट को रोका जा सकता है।

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