कोरोना का पुनः संक्रमण खतरे का संकेत

० ज्ञानेन्द्र रावत ० 
नयी दिल्ली -अमेरिकी संस्था सेंटर फार डिजीज कंट्रोल एण्ड प्रिवेंशन के अनुसार भारत में खसरा-रूबेला के टीकाकरण बढ़ने से नये मामलों की तादाद में काफी कमी आयी है। सेंटर की मानें तो 2017-2021 के दौरान देश में खसरा के मामले 62 फीसदी कम हुए हैं जबकि रूबेला के मामले 48 फीसदी कम हुए। उसके बाबजूद चुनौतियां अभी भी कम नहीं हुयी हैं। सबसे बडी़ चिंता का कारण यह है कि कोबिड महामारी से पैदा हुए लांग कोबिड की समस्या समूची दुनिया की बहुत बडी़ समस्या बन चुकी है।

 क्या कोरोना की फिर वापसी हो रही है, मौजूदा हालात तो यही संकेत दे रहे हैं। साल 2023 में देश में 46 फीसदी लोगों का दोबारा कोरोना संक्रमित होना तो यही साबित करता है। दावे कुछ भी किये जायें लेकिन हकीकत तो यही है कि कोरोना अभी भी रहस्य बना हुआ है और दुनिया के वैज्ञानिक लगातार उसके रहस्य को सुलझाने - समझने के जी तोड़ प्रयास करने में लगे हुए हैं। बहरहाल हालात गवाह हैं कि इस साल 46 फीसदी लोगों का देश में कोरोना की चपेट में आना बेहद चिंतनीय है। वह बात दीगर है कि बीते साल 2022 में यह तादाद 93 फीसदी के आसपास थी। जबकि 2021 में यह तादाद 48 फीसदी ही थी। कुल मिलाकर निष्कर्ष यही है कि कोरोना की फिर वापसी हो रही है।
यही वह अहम कारण है कि अमेरिका के वैज्ञानिकों द्वारा लगातार किये गये शोधों में यह समझने की कोशिश की गयी है कि आखिर कोरोना फैलाने में संक्रमित लोगों या मरीजों की क्या भूमिका रही है। भारत में इस बाबत लोकल सर्किल द्वारा किये गये देश के 319 जिलों में किये गये अध्ययन की रिपोर्ट मे यह खुलासा किया गया है कि लाख दावे किए जायें लेकिन यह सच है कि देश से कोरोना अभी भी गया नहीं है। अध्ययन की मानें तो देश में 4 फीसदी लोगों का यह मानना है कि वे चार से अधिक बार कोरोना संक्रमित हुए हैं, 7 फीसदी यह मानते हैं कि वे 3 बार कोरोना संक्रमित हुए हैं और 11 फीसदी लोग दो बार संक्रमण के शिकार हुए हैं,यह मानते हैं जबकि 34 फीसदी यह मानते हैं कि वह एक बार ही कोरोना संक्रमित हुए हैं।

इससे यह साफ हो जाता है कि खतरा अभी टला नहीं है और यह अभी गया नहीं है। इसकी एक वजह यह भी है कि टीके का असर कम हो रहा हो। विडम्बना यह कि अभी भी इस सम्बंध में कोई अधिकारिक सूचना नहीं है। यह भी नहीं कि जिन लोगों को कोरोना हो रहा है,क्या उनको कोरोना के टीके पूरे लग चुके थे और क्या अब कोरोना जो फिर दस्तक दे रहा है वह कोरोना के कौन से वैरियंट का नतीजा है। बहरहाल कोरोना का वायरस फिर अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा है,इसे नकारा नहीं जा सकता। बहरहाल अभी इससे डरने की जरूरत नहीं है।

 वह बात दीगर है कि अभी भी यह महामारी भारत ही नहीं,दुनिया में अपने पैर पसारे हुए है और नये नये वैरियंट के साथ अवतरित हो रही है। हां चीन जो कोरोना का जनक है, आज भी वह इसके जबरदस्त चंगुल में है और इससे उबर नहीं पाया है। डब्ल्यू एच ओ तक ने इसे स्वीकार किया है कि वहां लाख कोशिशों के बावजूद हालात पर काबू पाना सरकारी तंत्र के लिए आसान नहीं हैं। लेकिन सच्चाई पर पर्दा डालने से वह बाज नहीं आ रहा है। शंघाई के भयावह

हो चुके हालात से सभी भलीभांति वाकिफ हैं। यह भी कि चीन का कोरोना का नया घातक वैरियंट बी एफ-7 की देश में एन्ट्री और उसके दुष्प्रभाव को देशवासी महसूस भी कर चुके हैं कि किस तरह इसपर एन्टीबाडी का असर नाकाम रह जाता था। इसे डब्ल्यू एच ओ ने अब तक का सबसे खतरनाक सबसे तेजी से फैलने वाला वैरियंट करार दिया था जो कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटान में आर 346 टी म्यूटेशन से बना था जिसके कारण बी एफ-7 पर एंटीबाडी का असर नहीं होता था और एन्टी बाडी को हराकर यह शरीर में घुस जाता है। इसके लक्षण भी पहले वैरियंट के लक्षण जैसे ही हैं।

 इनमें बुखार, सिर दर्द,गले में खराश शामिल हैं ।यह इंसान के श्वसन तंत्र के ऊपरी हिस्से को प्रभावित करता है और कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों के लिए बेहद घातक है। इस सबके बीच हमारे स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया इससे घबराने की कोई जरूरत नहीं है, ऐसा कहते हैं। उनके अनुसार भले कोरोना अभी खत्म नहीं हुआ है,इसके बावजूद हम किसी भी स्थिति से निपटने को तैयार हैं। वे मानते हैं और टीकाकरण पर बल देते हुए कहते हैं कि इसके मुकाबले के लिए टीकाकरण सबसे बडा़ हथियार है। लेकिन सावधान रहना समय की मांग है।

अब सवाल यह है कि जिनको अब कोरोना हो रहा है, उनको टीके पूरे लग चुके थे या यह नया संक्रमण नये वैरियंट का नतीजा है। यह शोध का विषय है। वैसे वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना का एक नया वैरियंट ताजा संक्रमण का कारण हो सकता है। यह कोबिड-19 के एक्सबीबी श्रेणी का एक्सबीबी 1.16 वैरियंट है। यह भी जानकारी सामने आयी है कि तेजी से फैल रहा यह वैरियंट चीन, अमेरिका,सिंगापुर के अलावा दूसरे देशों में भी पाया गया है। खासियत यह है कि यह अपने मूल एक्सबीबी श्रेणी से विकसित हुआ है, इससे यह ज्यादा संक्रमण कारी है। न कि यह एक्सबीबी 1.15 वैरियंट से निकला है। इस पर भी वैज्ञानिकों में अलग- अलग राय है। संतोष का विषय तो यह भी है कि भारत में अभी तक 220,67,67,978 करोड़ कोरोना की वैक्सीन लग चुकी है, लेकिन देश-दुनिया में फैल रहे कोरोना संक्रमण को देखते हुए फिर भी भारत को अधिक सचेत रहने की जरूरत है।

अमेरिकी शोधों पर नजर डालें तो पता चलता है कि जिन लोगों को कोरोना संक्रमण हुआ था, उनमें भी महा संक्रामक की दशा वाले लोगों की तादाद बेहद कम थी या यूं कहें कि वे गिनती के एक या दो ही थे। तात्पर्य यह कि उनमें कोरोना के लक्षण बेहद सामान्य श्रेणी के ही थे और जिन लोगों को गंभीर रूप से कोरोना हुआ था, वे अपेक्षाकृत कम वायरस उत्सर्जित कर रहे थे। इस बारे में अब वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंच चुके हैं कि हर कोरोना संक्रमित समान रूप से खतरनाक नहीं होता है। अब वे इस दिशा में शोध में लगे हैं कि ऐसे वायरस या वायरस जनित महामारी में वे लोग कौन से होते हैं

 जो दूसरे लोगों के लिए ज्यादा खतरनाक होते हैं। यदि ऐसे लोगों की पहचान कर पाने में दुनिया के वैज्ञानिक कामयाब हो गये तो यह एक आश्चर्यजनक घटना होगी और चिकित्सा विज्ञान के लिए अभूतपूर्व कामयाबी। वैसे यह साबित हो गया है कि कोरोना वायरस का ज्यादातर उत्सर्जन हवा में ही होता है। वैसे कोरोना पर अब काबू पाना शुरू हो चुका है और दुनिया में कोरोना संक्रमितों की तादाद पर भी अंकुश लगना शुरू हो गया है। यह प्रसन्नता और संतोष का विषय है लेकिन देश में इनफ्लूएंजा और फ्लू के मामलों में बढो़तरी चिंता का सबब है। क्योंकि इसके लक्षण भी कोबिड-19 के समान जैसे कि गले में खराश, बुखार,बदन दर्द,थकान आदि ही हैं।

 ऐसी स्थिति में गंध महसूस न होना कोबिड का आम लक्षण क्है जिसे आमतौर पर नजरंदाज कर दिया जाता है। अध्ययन खुलासा करते हैं कि लांग कोबिड के एक तिहाई रोगियों में सूंघने की शक्ति कमजोर हो जाती है क्योंकि गंधग्राही कोशिकाएं मस्तिष्क को संदेश भेज पाने में नाकाम हो जाती हैं। रोगी को अजीब सा महसूस होने लगता है।जबकि प्रत्येक पांच में से एक रोगी को स्वाद का अनुभव ही नहीं होता। ऐसे में तुरंत जांच कराना जरूरी है। शोधकर्ताओं का निश्चित मत है कि यह वाकई बेहद महत्वपूर्ण है कि हम यह जानते हैं कि गंध और स्वाद हमारे जीवन पर गहरा असर डालते हैं।

 क्योंकि पूर्व अध्ययन और शोध इसके जीते जागते सबूत हैं कि जिन लोगों को सूंघने की शक्ति नहीं होती, वह उसे महसूस नहीं कर पाते,उनमें अवसाद,बेचैनी,एकाकीपन,तथा पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों को बनाये रखने में कठिनाई का जोखिम ज्यादा रहता है।इससे दैनिक जीवन प्रभावित होता है और निजी जीवन में स्वच्छता से लेकर यौन अंतरंगता भी कमजोर होती है।फिर देश में खसरा, रूबेला के टीकाकरण अभियान में कामयाबी के बाबजूद 2023 के आखिर तक इनके उन्मूलन का लक्ष्य पाना मुश्किल है।

 इसलिए जरूरी है कि हम इसके मूल ईयर,थ्रोट और नोज के बचाव पर विशेष ध्यान दें क्योंकि यही संक्रमण के प्रमुख केन्द्र है। इसलिए मास्क पहनें, कम से कम एक मीटर की दूरी बनायें और स्वच्छता का लगातार ध्यान रखें व किसी भी ऐसी चीज के स्पर्श के बाद हाथ धोते रहें। यह मान लें कि कोरोना अभी गया नहीं है, इसलिए बचाव ही हमें कोरोना संक्रमण की चपेट में आने से बचा सकता है।

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