कोरोना से ज्यादा खतरनाक है निपाह वायरस

० ज्ञानेन्द्र रावत ० 
पिछले दिनों केरल के कोझिकोड जिले में दो लोगों की निपाह वायरस के संक्रमण से मौत हो गयी। अभी एक और 39 वर्षीय व्यक्ति के निपाह वायरस से संक्रमित होने का समाचार है। यह व्यक्ति निपाह वायरस से संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क में आया था जिसकी 30 अगस्त को मृत्यु हो गयी थी। केरल में अबतक निपाह वायरस से संक्रमण के मामले बढ़कर चार हो गये हैं। निपाह के संक्रमण को देखते हुए राज्य और समीपवर्ती तमिलनाडु तथा कर्नाटक की सीमा से लगे जिलों में अतिरिक्त सतर्कता बरतने के निर्देश जारी कर दिये गये हैं और केरल में मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए उन सभी लोगों की जांच का फैसला किया गया है जो संक्रमित व्यक्तियों के संपर्क में आए हैं।

अभी निपाह वायरस से संक्रमित एक नौ साल का लड़का वैंटिलेटर सपोर्ट पर है। इसके अलावा अन्य प्रभावित लोगों की हालत स्थिर है। इस वायरस के प्रकोप को फैलने से रोकने के राज्य सरकार हर संभव प्रयास कर रही है। यहां तक कि जिले के सभी पूजा स्थलों सहित किसी भी प्रकार की सार्वजनिक सभाओं या कार्यक्रमों के आयोजन के खिलाफ सख्त निर्देश जारी कर दिये गये हैं। दैनिक आवश्यक सामग्री और मेडीकल की दुकानों को सुबह सात बजे से शाम पांच बजे तक खोले जाने के साथ पूजा स्थलों के बंद रखने के आदेश दिये गये हैं। 

यहां तक कि कर्नाटक सरकार ने राज्य के लोगों को निपाह वायरस के संक्रमण से बचने की खातिर राज्य के लोगों से अनावशयक रूप से केरल की यात्रा न करने,सीमावर्ती जिलों में बुखार की निगरानी तेज करने, राज्य के स्वास्थ्य कर्मचारियों को इसके बचाव सम्बंधित प्रशिक्षण देने व आपात स्थिति से निबटने हेतु जिला अस्पतालों में अतिरिक्त बिस्तर तैयार रखने के निर्देश दिये हैं। दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डाक्टर जुगल किशोर की मानें तो निपाह वायरस को लेकर सभी राज्यों को सतर्क रहने की बेहद जरूरत है। इसका प्रसार केरल के बाहर भी हो सकता है।

 खासतौर पर वहां जहां तापमान अधिक है और उमस ज्यादा है। वहां इसके प्रसार की संभावना सबसे अधिक है। आईसीएमआर के महानिदेशक राजीव बहल ने कहा है कि भारत में निपाह वायरस संक्रमण के इलाज के लिये आस्ट्रेलिया से मोनोक्लोनल एंटीबाडी की बीस और खुराक मंगायी जायेंगी। भारत को 2018 में आस्ट्रेलिया से मोनोक्लोनल एंटीबाडी की कुछ खुराकें मिली थीं जो आज केवल 10 रोगियों के लिए ही उपलब्ध हैं। देश में अभीतक किसी को भी यह दवाई नहीं दी गयी है।

इस बारे में केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीना जार्ज का कहना है कि राज्य में निपाह वायरस से प्रभावित पहले व्यक्ति की पहचान कर ली गयी है। इसके बाद उसके मोबाइल टावर लोकेशन के आधार पर उस स्रोत और उसके स्थान की तलाश शुरू कर दी गयी है जहां से वह संक्रमित हुआ था। साथ ही केन्द्रीय दल वायरल लोड का पता लगाने के लिए चमगादड़ के नमूने इकट्ठा कर रही है। सरकार छठे व्यक्ति के संपर्क का भी पता लगाने का प्रयास कर रही है जिसके बीते शुक्रवार को इस वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि हुयी थी। 

उनके अनुसार कोझिकोड मेडीकल कालेज में 21 लोग और मातृ शिशु स्वास्थ्य संस्थान में दो बच्चे पृथक वास यानी क्वाराइंटाइन में हैं। अब संक्रमण का कोई नया मामला प्रकाश में नहीं आया है जबकि 94 नमूनों में संक्रमण की पुष्टि नहीं हुई है जो राहत की बात है। संतुष्टि की बात तो यह है कि ये नमूने उन लोगों के थे जो उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों के संपर्क में थे। वीना जार्ज के अनुसार संक्रमित सभी लोग संक्रमण की पहली लहर में प्रभावित हुए हैं। संक्रमण के ये मामले दो समूहों में आये हैं। 

एक समूह में उस व्यक्ति के परिवार के दो सदस्य हैं जो पहला मामला था और दूसरा वह व्यक्ति है जो अस्पताल में उनके संपर्क में आये थे। यह सभी क्वारांइंटाइन कर दिये गये हैं।पहले मामले में जिस व्यक्ति की पहचान हुई, उसकी 30 अगस्त को मृत्यु हो गयी थी। उसकै नौ वर्षीय बेटे और दो अन्य का इलाज किया जा रहा है। राज्य में दूसरी मौत 11 सितम्बर को हुई। सबसे बडी़ चिंता की बात यह है कि संपर्क वाले लोगों की तादाद लगातार बढ़ रही है। शनिवार से पहले जो तादाद 1080 थी, उसमे शनिवार को 130 का इजाफा और हो गया। इनमें 327 स्वास्थ्य कर्भी और 22 मल्लापुरम के लोग शामिल हैं।

यदि इतिहास पर नजर दौडा़एं तो पाते हैं कि निपाह की पहचान सबसे पहले 1998 और 1999 में मलेशिया में हुयी थी। वहां जहां सबसे पहले इसके संक्रमित व्यक्ति का पता चला, उस इलाके का नाम निपाह था जिसकी वजह से इसका नाम ही निपाह पड़ गया। उसके बाद से तो इसके मामले सिंगापुर,बांग्लादेश और भारत में सामने आते रहे हैं। इसके अलावा दूसरे देशों में भी इसके मामले सामने आते रहे हैं।2001 में पहली और 2007 में दूसरी बार देश में पश्चिम बंगाल में इस वायरस ने अपने पैर पसारे।

2018 में भारत में केरल में संक्रमित हुए 23 लोगों में से 21 की मौत हुयी। अब यह चौथा मौका है जब केरल में कोझिकोड में इसके दो मरीज मौत के मुंह में चले गये हैं। असलियत में यह एक जूनोटिक बीमारी है। इसका वायरस चमगादडो़ं में पलता और बढ़ता है। यह सूअर और घोडो़ं के जरिये इंसानों तक पहुंचता है। यह वायरस इंडोनेशिया, कंबोडिया, फिलीपींस, थाईलैंड,

मेडागास्कर, घाना आदि देशों के चमगादडो़ं में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। इसकी खासियत यह है कि भले इसका संचरण जानवरों से इंसानों तक में होता है लेकिन इसका प्रसार इंसान से इंसान में तेजी से होता है। यहां इस तथ्य को भी नकार नहीं सकते कि कोबिड के दौरान चमगादड़ और इन पर किया जा रहा शोध-अनुसंधान काफी विवाद के विषय रहे थे। यह भी सच है कि चमगादड़ निपाह के साथ साथ अनेकों मालूम और नामालूम वायरसों के भंडार होते हैं। 

इस नजरिये से चमगादडो़ं पर शोध-अनुसंधान बेहद जरूरी है। यह भी गौरतलब है कि निपाह के लक्षण और दूसरी श्वसन सम्बंधी बीमारियों जैसे ही होते हैं। और सबसे अहम बात यह है कि दावा भले कुछ भी किया जाये अभी तक निपाह का कोई इलाज नहीं है और न ही कोई टीका आज तक ईजाद हो पाया है। हां लक्षणों के अनुसार ही इसका इलाज किया जाता है। जहां तक मोनोक्लोनल एंटीबाडी का सवाल है, देश में अभी तक किसी को यह दवाई नहीं दी गयी है। 

इसके बावजूद इस दवाई के शीघ्र आस्ट्रेलिया से आयात करने का केन्द्र सरकार से केरल सरकार ने अनुरोध किया है। देखना यह है कि यह कब आ पाती है और कितनी कारगर है। इसका अभी परीक्षण ही चल रहा है। भारतीय चिकित्सा एवं अनुसंधान परिषद का केरल में निपाह वायरस से संक्रमितों की तादाद में बढो़तरी पर चिंतित होना स्वाभाविक है। परिषद की मानें तो कोरोना संक्रमण से निपाह वायरस कई गुना ज्यादा घातक है। निपाह वायरस की मृत्यु दर कोरोना से कई गुना ज्यादा है।

 निपाह वायरस में मृत्यु दर 49-79 फीसदी के बीच है यानी निपाह वायरस से संक्रमित 100 मरीज में से 40 से 70 लोगों की जान जा सकती है। जबकि कोरोना संक्रमित की मृत्यु दर सिर्फ 2 से 3 ही थी। ऐसे में निपाह वायरस की गंभीरता का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। वैसे ताजा निपाह वायरस के संक्रमण को देश का स्वास्थ्य विभाग खतरनाक मानने को तैयार नहीं है। यह आश्चर्यजनक नहीं तो क्या है जबकि इसका अभी तक कोई इलाज नहीं है। उसके अनुसार वह इस मामले में संजीदा है और संक्रमित इलाकों की घेराबंदी कर जांच कर रहे हैं। 

कोरोना से निपटने का हमें अनुभव है और हम मुस्तैदी से इस पर काबू पाने का प्रयास कर रहे हैं। उस हालत में जबकि भारतीय चिकित्सा एवं अनुसंधान परिषद इसे कोरोना से भी घातक और खतरनाक करार दे चुका है। परिषद के डीजी राजीव बहल के अनुसार अब देश में एक नेशनल हैल्थ रिसर्च प्रोग्राम की शुरूआत की जा रही है। इसके तहत संक्रामक बीमारियों के लिए 12 अहम बिंदुओं की पहचान कर ली गयी है। इनमें एक से दूसरे में न फैलने वाले संक्रामक रोग, बच्चों के जन्म से जुडी़ समस्याएं और पोषण सहित प्राथमिक स्वास्थ्य एवं देखभाल पर अध्ययन किया जायेगा। 

इस दृष्टि से वह चाहे जीका हो, नोरो आदि जूनोटिक बीमारियों, चिकनगुनिया हो, डेंगू हो,फ्लू हो, सार्स हो या फिरसीओबी-2 और श्वसन सम्बंधी दूसरी बीमारियों का समय पर निगरानी, देखभाल व उपचार संभव हो सकेगा। निष्कर्ष यह कि यदि हम ऐसी बीमारियों का वास्तव में प्रकोप कम करना चाहते हैं और इसके इलाज के प्रति हम बचनवद्ध हैं और ईमानदारी से जनता को इनसे निजात दिलाना चाहते हैं तो हमें समग्रता में काम करना होगा और जूनोटिक बीमारियों के खिलाफ संयुक्त कार्य योजना विकसित कर केन्द्र व राज्य स्तर के बीच समन्वय स्थापित करना होगा। यह काम स्थानीय निकाय के सहयोग के बिना असंभव होगा।

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