द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक श्री केदारनाथ धाम

० डॉ. हेमा उनियाल ० 
 हिमालय के पांच प्रमुख खंडों की गणना करते हुए इन स्थानों पर पांच प्रमुख शैव तीर्थ होने की बात पौराणिकों द्वारा स्पष्ट की जाती है।हिमालय के इन पांच प्रमुख खण्डों में :- नेपाल में श्री पशुपतिनाथ,कूर्मांचल ( कुमाऊं ) में श्री जागनाथ(जागेश्वर),केदारखंड ( गढ़वाल)में श्री केदारनाथ , जलंधर (हिमाचल) में श्री बैजनाथ और कश्मीर खंड में श्री अमरनाथ नामक प्रमुख शैव तीर्थ अपनी पूर्ण भव्यता के साथ इन स्थानों पर प्रतिष्ठित हैं।

भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक तथा उत्तराखंड राज्य के चार प्रमुख धामों( श्री बद्रीनाथ,केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री)में से एक श्री केदारनाथ धाम गढ़वाल क्षेत्र के महाहिमालय में 11,753 फीट ( 3,584 मीटर)की ऊंचाई पर महालया पर्वत(5,790 मीटर ) की ढाल एवम जनपद रुद्रप्रयाग के अंतर्गत नागपुर परगना के पट्टी मल्ला कालीफाट में मंदाकिनी नदी के निकट अवस्थित है।
केदारनाथ को पंच गंगाओं का उदगम क्षेत्र बताया गया है जिनमें क्षीर गंगा( वासुकी गंगा), चोरबाड़ी ताल से एक अन्य धारा,काली गंगा ( महालय पर्वत श्रृंग),मंडानी गंगा( मंडानी पर्वत श्रृंग), मद्महेश्वर गंगा( उद्गम काशनीताल/नंदी कुण्ड), जो नाला के समीप मंदाकिनी में विलीन होती है )।इस प्रकार श्री केदारनाथ क्षेत्र के हिमाच्छादित हिम श्रृंगों एवम सरोवरों से उद्गमित गंगा के सर्वमान्य नाम को धारण करने वाली ये सभी धाराएं मुख्य धारा मंदाकिनी में संगमित होकर मन्दाकिनी नदी के प्रखर अस्तित्व में विलीन हो जाती हैं।

पौराणिक मान्यतानुसार महाभारत युद्ध समाप्ति के बाद वेदव्यास जी के कहने पर , पांडव गोत्र हत्या के पाप के निवारणार्थ उत्तराखंड हिमालय की ओर गए थे।शिव उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे इसलिए महिष का रूप धारण कर अन्य भैंसों के साथ विचरण करने लगे।जब शिव को यह आभास हुआ कि उन्हें महिष( भैंसा)रूप में भीम द्वारा पहचान लिया गया है तो वह पृथ्वी में समाविष्ट होने लगे।तभी भीम में महिष रूपी शिव का पिछला भाग पकड़ लिया जो शिला रूप में यहां प्रतिष्ठित हुआ।वही शिला केदारनाथ में प्रतिष्ठित एवम पूजित है।

पंचकेदारों में शिव का नाभि रूपि भाग मद्महेश्वर, भुजा रूपि भाग तुंगनाथ,मुखमंडल रुद्रनाथ में और जटा रूपि भाग कल्पनाथ में प्रतिष्ठित एवम पूजित होने की मान्यता है। केदारनाथ प्रमुख क्षेत्र सहित यह पांचों स्थान पंचकेदार के नाम से केदारखंड गढ़वाल क्षेत्र में मान्यताप्राप्त शिव के प्रमुख दिव्य स्थान हैं। राणिक मान्यतानुसार श्री केदारनाथ में ब्रह्मा जी ने तपस्या की थी।मंदिर से तीन किलोमीटर दूर ब्रह्मगुफा है।केदारनाथ में भगवान विष्णु द्वारा सहस्र कमलों से शिव अभिषेक के कथानक भी मिलते हैं।केदारनाथ के पीछे लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर एक खड़ी चट्टान एवम जलधारा है

जिसे स्वर्गारोहिणी,भैरवझाप,महापंथ,भृगुपंथ आदि नामों से जाना जाता है।ब्रिटिशकाल सन 1831 तक भी कई तीर्थयात्री मोक्ष की प्राप्ति के लिए इसी स्थान से गिरकर अपने प्राणों का त्याग कर देते थे।सातवीं सदी के पूर्वार्ध में ही बाणभट्ट द्वारा रचित "हर्षचरित" के पांचवे उल्लास में भृगुपथ से मोक्ष प्राप्त हेतु प्राणों के उत्सर्ग का वर्णन मिलता है।ब्रिटिश शासन काल में इस प्रथा पर रोक लगा दी गई।

केदारनाथ मंदिर के संबंध में धार्मिक मान्यता है कि इसे पांडवों द्वारा निर्मित किया गया तथा आदि शंकराचार्य द्वारा इसका जीर्णोद्धार करवाया गया।पुरातात्विक आधार पर इस देवालय ने अपने निर्माण के कम से कम तीन प्रमुख उत्थान देखें हैं ।पहला:-उत्तर गुप्तकाल के आसपास जिसके अवशेष ईशान मंदिर के बाहर बिछे प्रस्तर पर "गुप्तब्राह्मी" के एक खंडित शिलालेख के रूप में प.राहुल सांकृत्यायन ने देखे थे।इससे स्पष्ट है कि 12,13 सदी में बने वर्तमान मंदिर से पहले भी यहां कोई मंदिर था ,जिसका इस लेख से संबंध है।

द्वितीय उत्थान में (12वीं शती ई.के उत्तरार्द्ध) सम्पूर्ण मंदिर नया बनाया गया,जिसके चिन्ह विद्यमान हैं:-गर्भगृह एवम अंतराल,गर्भगृह के भित्ति स्तंभ लेख,उसका द्वार अलंकरण तथा देवकोष्ठों में स्थापित विशाल पाषाण मूर्तियां इसकी साक्षी हैं।शिखर को छोड़कर,इस काल की संरचना आज भी पूर्ववत हैं ।तृतीय उत्थान 18वीं शती ई.के अंत के निकट हुआ ।इस काल में शिखर का जीर्णोद्धार तथा अग्रभाग में मण्डप जोड़ा गया। पुराविद डॉ. कठोच के अनुसार संभवतः यह पुनः संस्कार रानी अहिल्याबाई होल्कर (1765-1795ई.) द्वारा किया गया।इस मंदिर के तीन प्रधान उत्थानों के विषय में प्रायः यही निष्कर्ष महापंडित राहुल का भी है।

विशालतम श्री केदारनाथ मंदिर स्कंध तक 66 फीट ऊंचा है।इसके ऊपर 10फुट ऊंचा काष्ठ छत्र विराजमान है।भूरे प्रस्तर से निर्मित इस देवालय के गर्भगृह में त्रिकोणाकृति की एक वृहद शिला लिंग रूप में पूजित है जिसमें घृत मर्दन करने, श्रावण मास में ब्रह्मकमल पुष्प अर्पित करने एवम निकट में बैठकर रूद्रीपाठ का विशेष महात्म्य माना गया है।इस शिला के चतुर्दिक परिक्रमा पथ निर्मित है।गर्भगृह का द्वार पूर्वाभिमुख एवम अलंकृत है। मण्डप के मध्य में पीतल में नंदी हैं। मुख्य द्वार के दोनों ओर श्रृंगी और भृंगी नामक गण द्वारपाल के रूप में प्रदर्शित हैं।श्री केदारनाथ की श्रृंगार मूर्ति पंचमुखी है।

श्री केदारनाथ के पीछे के भाग में अमृतकुंड, उदककुंड है तथा नवदुर्गा मंदिर,सत्यनारायण मंदिर,पंचमुखी महादेव मंदिर हैं।मंदिर से कुछ ही दूर आदि शंकराचार्य समाधि स्थल है। आदि शंकराचार्य श्री केदारनाथ धाम में ही मात्र 32वर्ष की आयु में देह त्यागकर समाधिस्थ हुए थे। केदारनाथ स्थल से ही 2 किलोमीटर की दूरी पर चोरवाड़ी सरोवर है।राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अस्थियों का यहां विसर्जन किए जाने के बाद इसे गांधी सरोवर भी कहा जाने लगा है। वासुकी गंगा का उद्गम वासुकी सरोवर भी देखने योग्य है। 

साथ ही ब्रह्म गुफा,भैरव मंदिर, रेतस कुण्ड,हंस कुण्ड दर्शनीय हैं।हंस कुण्ड में पितृ तर्पण व पिंडदान के लिए पुरोहित अपने अपने यजमानों को तर्पण व पिंडदान करवाते हैं। श्री केदारनाथ के प्रधान अर्चक /महंत को रावल कहा जाता है जो दक्षिण भारत के नंबोदरी ब्राह्मण होते हैं।रावल के शिष्यों में से ही अगला रावल नियुक्त होता है।इस स्थल का गद्दी स्थान ऊखीमठ में है।रावल के अधीन पंचकेदार के मंदिर तथा अन्य 11 मंदिर आते हैं।

श्री केदारनाथ के कपाट दीपावली के बाद भैयादूज के दिन हर वर्ष बंद हो जाते हैं और मई प्रथम के आसपास दर्शनों के लिए खुलते हैं। कपाट बंद होने के समय केदारनाथ की पंचमुखी मूर्ति ऊखीमठ में अपने गद्दी स्थान पर विराजमान हो जाती है।शीतकाल में जब केदारनाथ बर्फ से आच्छादित हो जाते हैं उस समय भी केदारनाथ की पूजा ऊखीमठ गद्दी स्थल में होती है।

ऋषिकेश से लगभग 224 किलोमीटर दूर श्री केदारनाथ धाम अत्यंत दिव्य ,पावन, ,आध्यात्मिक क्षेत्र है।इस स्थल के प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिकता को यहां पहुंचकर ही अनुभव किया जा सकता है। जून माह 2013 में उत्तराखंड की केदारघाटी में विनाशकारी जल प्रलय में भी एक बड़ी शिला स्वयं में सबकुछ झेल ,शिव के इस दिव्यधाम को बिना कुछ हानि पहुंचाए बचा ले गई।

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