24-25 दिसम्बर को मुंबई में होगा ‘संविधान नाटय उत्सव’

० आशा पटेल ० 
भारतीय संविधान आज़ादी आंदोलन से निकला जन मुक्ति ग्रंथ है ! यह ग्रंथ लोकतंत्रिक व्यवस्था का पथ प्रदर्शक और सूत्र संचालक है! आज़ादी आंदोलन के मंथन से निकला अमृत है जो वर्ण व्यवस्था से भारत की जनता को मुक्त कर सबको मनुष्य मान विधि सम्मत बराबरी का अधिकार देता है! आज संविधान ख़तरे में हैं और कोई अचरज नहीं होना चाहिए कि आगामी जनवरी में मंदिर उद्घाटन के बाद वर्णवादी धर्मांध सत्ता संविधान का मुख्य पृष्ठ और प्रस्तावना बदल कर वर्णवादी सत्ता और राष्ट्र की घोषणा कर दे !

 वैसे भी वर्णवादी धर्मांध सत्ता ने विगत 9 साल से लोकतंत्र के चारों स्तम्भों को ध्वस्त कर मूर्छित किया हुआ है । न्यायपालिका अपने अंधेरों में गुम है, चुनाव आयोग और कार्यपालिका भक्ति रस का आनंद ले रहे हैं. विधायिका अमृत काल में लोकतंत्र को धर्मांध भीड़तंत्र में बदल संसद की गरिमा और गौरव को नेस्तानामुद कर रही है. मीडिया वर्णवादी धर्मांध सत्ता के चरण धो अमृतकाल का जयकारा लगा रहा है ! अब बात जनता की ... जनता पांच किलो मुफ्त अनाज़ में अपना वोट बेच कर मोक्ष प्राप्त कर चुकी है. अब मंदिर में भजन कीर्तन करती रहेगी ... क्योंकि मंदिर ही अस्मिता है, देश है ...

ऐसी विकराल स्थिति में थिएटर ऑफ़ रेलेवंस जनता में नागरिक भाव और विचार जगाने के लिए प्रतिबद्ध है. सत्यमेव जयते के सूत्र का सत्य खोजते हुए हम कलाकार अपने नाटकों से देश को सत्य से रुबरू करा राजनैतिक परिदृश्य बदलना चाहते हैं जिससे हमारा संविधान सुरक्षित रहे. विचार कीजिए धर्मनिरपेक्षता, समता,समानता, बंधुता के बिना संविधान क्या है? प्राणहीन शरीर की तरह सिर्फ़ कागज़ का टुकड़ा । राजे राजवाड़े , मुगल शासन और अंग्रेज़ों के भी कायदे कानून थे लेकिन संविधान ने पहली बार सभी भारतीयों को समान समझा और समान अधिकार दिए । सबसे बड़ी बात भारत को मां मानने वालों ने , नारी को पूजने वालों ने स्त्री को मनुष्य नहीं माना उस स्त्री को भारतीय संविधान ने मनुष्य मान बराबरी का अधिकार दिया।

बिना धर्मनिरपेक्षता,समता,समानता, बंधुता के भारत वर्णवादी - धर्मांध मान्यताओं, सूत्रों, सूक्तियों और सत्ताधीश की सनक से चलेगा और मणिपुर , जंतर मंतर के विक्षिप्त दृश्य पूरी दुनिया में वायरल होते रहेंगे । आदिवासी - बहुजनों और महिलाओं के साथ वही होगा जो संविधान पूर्व भारत में होता था ! इसलिए अनिवार्य है कि संविधान को बचाने के लिए व्यक्ति पूजा छोड़ वर्णवादी - धर्मांध शक्तियों को कुंद कर निरस्त किया जाए । मनुष्यता के बचे खुचे पैरोकार एकजुट हो एक जन प्रतिरोध खड़ा करें जो संविधान को बचा पाने में सार्थक और सफ़ल हो !

इस नाट्य उत्सव में प्रस्तुत होंगे मंजुल भारद्वाज रचित दो मराठी नाटक 24 दिसंबर , नाटक राजगति मंजुल भारद्वाज रचित राजनैतिक परिदृश्य को बदलने का सूत्र है ! राजनैतिक नेतृत्व में आत्मबल जगाने का मंथन है ! राजनीति गंदी नहीं अपितु मानव कल्याण की पवित्र नीति है का उद्घोष कर जनमानस को राजनैतिक भ्रम से निकाल संविधान सम्मत भारत के मालिक होने की लौ जगाता है नाटक राजगति ! 25 दिसंबर ,नाटक गोधडी मंजुल भारद्वाज रचित सांस्कृतिक वर्चस्ववाद के खिलाफ़ विद्रोह है !

 वर्णवाद मुक्त भारत का प्रण है । सांस्कृतिक शोषण, छूत - अछूत , भाग्य , भगवान के चक्र में पिस रहे भारतीय की मुक्ति का यलगार है! संस्कृति का शोध है नाटक गोधड़ी ! लोक शाहीर अन्नाभाऊ साठे, नाट्यगृह, भायखला , मुंबई लाकार:अश्विनी नांदेड़कर, सायली पावस्कर, कोमल खामकर, तुषार म्हस्के, प्रियंका कांबळे, संध्या बाविष्कर ,आरोही , प्रांजल, नृपाली जोशी, तनिष्का लोंढे, प्रांजल गुडीले, ऋतुजा चंदनकर और अन्य कलाकार !

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