सीएसयू परिसर में आईएफएफसीओ द्वारा निर्मित सरस्वती मन्दिर का निर्माण सांस्कृतिक आस्था का प्रतीक

० योगेश भट्ट ० 
नयी दिल्ली - केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,दिल्ली के लखनऊ में अवस्थित महत्त्वपूर्ण परिसर को इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड (आईएफएफसीओ ) द्वारा सरस्वती मंदिर निर्माण के लिए 25/-लाख रुपये का अनुदान दिये जाने पर कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी ने कहा है कि सीएसयू के लिए यह एक ऐतिहासिक क्षण है । साथ ही भारतीय संस्कृति के नवजागरण की दृष्टि में भी सर्वथा गौरवशाली क्षण माना है भारत एक कृषि प्रधान देश है और उनके लिए बनायी गयी आईएफएफसीओ संस्था की ओर से दी गयी 

यह महत्त्वपूर्ण प्रचुर राशि भारतीय किसान की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप में सहभागिता का प्रतीक भी माना जा सकता है । उन्होंने कहा कि हमें इस तथ्य का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि वैदिक ग्रंथों में कृषि कर्म को सर्वश्रेष्ठ कार्य माना गया है । इससे संस्कृत तथा कृषि के बीच वर्ण्य दृष्टि से महत्त्वपूर्ण संबंध भी उजागर होता है ।वस्तुत: यह संस्था राष्ट्र निर्माण के लिए अपनी ओर से अनेक रचनात्मक कार्यों में सहयोग के लिए आगे आता रहा है । लेकिन मां सरस्वती के मंदिर के निर्माण के लिए इक्ट्ठे इतनी बड़ी राशि का अनुदान दिया जाना ,इसलिए भी बहुत ही प्रशंसा की बात है

 कि इसने देश की सांस्कृतिक धरोहर और उसकी परम्परा के संरक्षण तथा संबर्धन के लिए अनुदान दिया है क्योंकि भारतीय परम्परा में मां सरस्वती को विद्या की देवी मानी जाती हैं । लेकिन देश के इक्के दुक्के स्थानों में ही इनका मंदिर देखने को मिलते हैं । इसके लिए कुलपति प्रो वरखेड़ी ने भारत सरकार ,आईएफएफसीओ के अधिकारियों के साथ कर्मचारियों तथा लखनऊ परिसर के छात्र छात्राओं,संकाय सदस्यों ,स्टाफ के साथ साथ वहां के निदेशक तथा ज्योतिष शास्त्र के जाने माने विद्वान प्रो सर्वनारायण झा को हार्दिक बधाई दी है ।

प्रो सर्वनारायण झा ने कहा है कि इस परियोजना के भव्य निर्माण के लिए दी गयी इस राशि के लिए न केवल लखनऊ परिसर , अपितु देश में अवस्थित इसके सभी परिसरों तथा संबंद्ध महाविद्यालयों और शोध संस्थानों में खुशी की लहर है और आगे आशा जताते प्रो झा ने यह भी कहा कि जिस प्रकार सीएसयू संस्कृत विद्या के प्रचार प्रसार के लिए देश में लब्धप्रतिष्ठ है उसी तरह इनके प्राण प्रतिष्ठा हो जाने से भविष्य में मां सरस्वती मंदिर के स्थापत्य कला तथा अराधना के रुप में यह देश भर में जाना जाएगा। साथ ही साथ भारत के समस्त जनों विशेष कर छात्र छात्राओं के लिए आकर्षक का केन्द्र भी बनेगा । वस्तुत: इस विजन को मूर्त रुप देने में माननीय कुलपति प्रो वरखेड़ी जी की दूरदृष्टि का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है।

इसको लेकर सीएसयू के कुलसचिव प्रो आर .जी .मुरली कृष्ण ने भी कहा कि यह अनुदान देश में संस्कृत तथा संस्कृति के प्रति बढ़ते रुझान का प्रबल संकेत है । डीन , अकादमी ,प्रो बनमाली बिश्बाल का भी मानना है कि इस तरह के प्रयास विकसित भारत अभियान -2047को बड़ा ही बल मिलेगा । प्रो मदन मोहन झा,डीन , छात्र कल्याण का विचार था कि आने वाले समय में मां सरस्वती का यह भव्य मंदिर युवा समाज विशेष कर के विद्यार्थियों के लिए सतत प्रेरणादायक होगा । प्रो मधुकेश्वर भट , निदेशक ,योजना ने संभावना जताते कहा है कि भविष्य में देश भर के छात्र छात्राओं के लिए यह लखनऊ परिसर इस मंदिर के कारण भी बहुत ही बड़ा आकर्षण का केन्द्र बनेगा ।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"मुंशी प्रेमचंद के कथा -साहित्य का नारी -विमर्श"

गांधी जी का भारतीय साहित्य पर प्रभाव "

हस्तशिल्प आर्टीजंस के प्रमोशन हेतु हुआ फ्लो जयपुर चैप्टर का ' जयपुर आर्ट फेयर

“द ग्रेट इंडियन ट्रेवल बाजार 2024“ का आयोजन 5 से 7 मई जयपुर में

इशरे का बिल्डिंग सेक्टर में स्थिरता को बनाये रखने हेतु हुआ सम्मेलन