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लर्नर ड्राइविंग लाइसेंस के लिए ऑनलाइन आवेदन कर 790 रुपए का करे भुगतान:सारण डीटीओ

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छपरा - बिहार , ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के लिए दलालों के चक्कर में नहीं पड़े। ड्राइविंग लाइसेंस बनाने की प्रक्रिया ऑनलाइन कर दी गई है ड्राइविंग लाइसेंस से पूर्व लर्नर लाइसेंस के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं  जहां उनका फोटो लेकर 1 सप्ताह में ड्राइविंग लाइसेंस जारी कर दिया जाएगा। लर्नर लाइसेंस जारी होने पर 1 महीने के बाद तथा 6 माह के पहले कभी भी 23 सौ रुपए का शुल्क जमा कर ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त किया जा सकता है। लर्नर वाहन चलाए जाने के दौरान उसके साथ ट्रेंड चालक का होना अनिवार्य है. जहां उनका फोटो लेकर 1 सप्ताह में ड्राइविंग लाइसेंस जारी कर दिया जाएगा। लर्नर लाइसेंस जारी होने पर 1 महीने के बाद तथा 6 माह के पहले कभी भी 23 सौ रुपए का शुल्क जमा कर ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त किया जा सकता है। लर्नर वाहन चलाए जाने के दौरान उसके साथ ट्रेंड चालक का होना अनिवार्य है. ताकि जोधा ले आजकल चल रही है उसका अंकुश लगे

दिल्ली दिव्यांग शिक्षक संघ द्वारा मीटिंग का आयोजन 

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नयी दिल्ली , दिल्ली के नांगलोई इलाके की कविता कॉलोनी में दिल्ली दिव्यांग शिक्षक संघ(DDTA) के तत्वधान में दिल्ली के सरकारी विद्यालयों में कार्यरत अध्यापको की मीटिंग संपन्न हुई। मीटिंग की अध्यक्षता सीनियर अध्यापक करमवीर ने की। दिल्ली दिव्यांग शिक्षक संघ के अध्यक्ष जय सिंह अहलावत ने मंच सञ्चालन किया। इस मीटिंग में नीरज, उमेशचन्द शर्मा, संजय शास्त्री, अशोक, निजामुद्दीन कुरैशी सहित हजारों की संख्या में शिक्षक इकठ्ठा हुए। इस मीटिंग में लम्बे समय चली आ रही वेतन विसंगतियों पर  त्रिलोक बिष्ट ने विस्तार से प्रकाश डाला और बताया कि किस तरह सरकार ग्रुप बी में रखे गए शिक्षकों को कम वेतन दे रही है, इसमें 16290, 18460 और 18750 वेतन मान छठे वेतन आयोग में दिए जाने की बाबत बात का जिक्र किया। दिव्यांग श्रेणी से चयनित और कार्यक्रम के अध्यक्ष शिक्षक करमवीर ने दिव्यांग शिक्षकों के पदोन्नति में आरक्षण को ख़त्म किये जाने पर दुःख व्यक्त किया साथ ही 1993 से विभाग और कोर्ट की लडाई के अनुभव गिनाये। DDTA के जनरल सेक्रेट्री सन्दीप तोमर ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए शिक्षकों का अपने हितों की खातिर एक लम्बी लडाई लड़ने क

सच बोलने के लिए उकसाता हूं,घास चरने के लिए नहीं कहता-ओम थानवी 

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जयपुर - वरिष्ठ पत्रकार, सम्पादक और वर्तमान में हरिदेव जोशी पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, जयपुर के कुलपति ओम थानवी ने बताया कि वह ३७ वर्ष पहले भी प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन में उपस्थित थे। हालांकि वह दौर इतना भयावह और हिंसक नहीं था। चुप्पियों को तोड़ने पर ज़ोर देते हुए थानवी ने कहा - मैं बोलने के लिए उकसाता हूँ। घास चरने के लिए नहीं कहता,बोलने की बहुत ज़रुरत है। समाज में शोषित वर्ग की पीड़ाओं पर चर्चा हुई, वहीं आज़ाद कलम के दायरे पर संवाद हुआ। फासीवाद, राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक प्रतिरोध विषय पर सत्र हुआ, वहीं भारतीय भाषाओं में प्रगतिशील साहित्य विषय पर व्यापक चर्चा हुई।   सत्र में  राजकुमार   ने   बताया   कि   वर्तमान   समय   में   लेखक   संघ   सिकुड़ते   जा   रहे   हैं   और   जनता   विभाजित   होती   जा   रही   है।   इस   समय   की   मांग   है   कि   विकल्पधर्मिता   के   साथ   साहित्य   लेखन   हो।   लेखक   के   लिए   आवश्यक   है   कि   वह   जो   भी   रचे   अथवा   लिखे ,  पाठक   वर्ग   के   साथ   उसका   जुड़ाव   दिखे।   लेखन   सामान्य   जन   के   संघर्षों   तथा   समस्याओं   के

वर्तमान समय में देश में धर्मनिरपेक्षता नहीं बची

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प्र गतिशील लेखक संघ का राष्ट्रीय सम्मेलन तीन दिन चलेगा। जयपुर में 37 वर्षों के बाद यह अधिवेशन हो रहा है। देश भर से 26 प्रदेशों से लगभग छह सौ लेखक इस सम्मेलन में भाग ले रहे हैं।  यही वो जगह है,  यही वो फिज़ा है यहीं पर कहीं आप, हमसे मिले थे।  एक लोकप्रिय गीत की यह पंक्तियां समूचे परिवेश में गूंज रही थीं। अवसर था, प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से आयोजित 17वें राष्ट्रीय सम्मेलन का, जहां समूचे देश से आए रचनाकार – लेखक – विचारक सम्मिलित हुए हैं।  सत्र का संचालन कर रहे सम्मेलन के राष्ट्रीय संयोजक और राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव ईशमधु तलवार ने बताया कि 37 वर्ष पहले यह अधिवेशन जयपुर के इसी रवीन्द्र मंच पर आयोजित हुआ था। उस समय आज के राष्ट्रीय महासचिव राजेन्द्र राजन और अध्यक्ष मण्डल के सदस्य सुखदेव सिंह सिरसा सहित अनेक लोग उस सम्मेलन में शामिल हुए थे, जो आज भी यहां मौजूद हैं। उस समय वे युवा थे, जबकि अब 37 वर्षों के बाद वे विभिन्न पदों पर आ चुके हैं। साहित्य, संस्कृति तथा अभिव्यक्ति के विविध स्वरूपों से सराबोर एक सुन्दर सुबह, जिसका शुभारम्भ सांस्कृतिक मार्च से हुआ। यह मार्च अल्बर्ट हॉल पर

हिंदुस्तान में जन्मी हिंदी नहीं बनी महान

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। हिंदी की बिंदी । हिंदी की बिंदी मां के माथे की शान। हिंदी हिंदू मेरा भारत महान।। बिबिताओ का ये भारत, भाषाओं में अनजान। पंजाबी, उड़िया,असमी,तैलगू तमिल सभी महान। हिंदुस्तान में जन्मी हिंदी नहीं बनी महान। हिंदी हिंदू  भारत मां की शान। राष्ट्र भाषा हिंदी कब बनेगी महान।। बैदिक भाषा लुप्त हो चली, संस्कृत का भी अधूरा ज्ञान, बेद ऋचाओं का ये भारत विश्व में रहा महान। पशु पक्षी भी अपनी भाषा नहीं बदलते, बदल रहा भाषा केवल इन्सान। फिर हम कैसे बोलें हिंदी देश की शान। कब होगी राष्ट्र भाषा  हिंदी,मातृ भाषा की शान। तब सचमुच होगी हिंदी , गौरवशाली होगा हिंन्दुस्तान।। हिंदी की बिंदी भारत मां की शान।। ।। हिंदी दिवस के शुभ अवसर पर हिंदी को शत् शत् प्रणाम्।।

बच्चा बच्चा बोले हिंदी , हिंदी बहुत महान है

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हिन्दुस्तान ------ हिन्दुस्तान------ हिन्द देश की गौरव गाथा  हिन्दी ही बतलाती है अधरों पर मुस्कान लिये ये गीत प्यार के गाती है आंखों में जो भाव तैरते उस की ये पह्चान है बच्चा बच्चा बोले हिंदी  हिंदी बहुत महान है हिन्दुस्तान------- हिन्दुस्तान-------- साहित्य के प्राण इसी से इक इक शब्द है एतिहासिक देश के हर कोने मे हिंदी  दिल्ली पूना या नासिक पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण भाषा से उत्थान है बच्चा बच्चा बोले हिंदी  हिंदी बहुत महान है हिन्दुस्तान --------- हिन्दुस्तान ---------- सब भाषायें नदियों जैसी हिन्दी सागर जैसी है आकर सब मिल जाती इसमें लगती ममता जैसी है  वैज्ञानिक है तकनीकी है हिन्दुस्तान की शान है बच्चा बच्चा बोले हिंदी  हिंदी बहुत महान है हिन्दुस्तान -------- हिन्दुस्तान------- >>>>>>>>><<<<<<<<<   गीत            आओ  हम हिंदी में बाँटें  सुख- दुख और व्यव्हार सचमुच जीवन को मिल पाये इक अनुपम उपहार। सब भाषाओं का है संगम  संस्कृत है बुनियाद अपनी  ही कुछ भ्रष्टाचारी निकली है औलाद गैर मुल्क की भाषा से क्यूं करते इतना प्यार आओ हम हिन्दी

मानवीय गुणों में लगातार गिरावट आ रही है

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हमारा देश मानवीय गुणों के आधार पर जहां विश्व में श्रेष्ठे स्थान रखता था। आज मानवीय गुणों में लगातार गिरावट आ रही है। एक जमाना स्वतंत्रता के पश्चात ऐसा भी था जब देश में गरीबी का आलम था लोगों के पास खाना जुटाने के लिए पैसे नहीं हुआ करते थे। गांव के लोग आपस में एक-दूसरे की मदद किया करते थे बदले में काम करने वाले को अनाज या खाना दिया जाता था। पैसे का अभाव था फिर भी उसकी बड़ी कीमत थी रुपया चांदी का था । सोना वर्ष चौंसठ पैंसठ में पिच्चासी रुपए तोला था। लोगों के पास सोने चांदी के जेवरात हुआ करते थे,जो बड़े घरानों में होते थे, गरीब घर के लोग लड़के लड़कियों की शादी में मांग काम चलाते थे।थोड़े बहुत रुपये उधार या साहुकार से व्याज पर मिल जाता था। लड़के-लड़कियों की शादी या पैतृक कार्यो में गांव परिवार और रिश्तेदारों द्वारा अनाज रुपयों, घी, तथा गाय बकरी की मदद दी जाती थी। यह उस गांव की मानवता निशानी मानी जाती थी। आज ये सारी प्रथाएं समाप्ति की ओर हैं । उस समय की नौकरी अधिकतर फौज की होती थी।पढा लिखा तो दूर अनपढ़ जवान भी सेना में भर्ती हो जाता था। मेरे ताऊजी सुवेदार थे उनकी मृत्यु पर ताई जी को ९रुपये प

हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की धार कुंद पड़ गई

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सितंबर माह आते ही हर साल हिन्दी दिवस और पखवाड़ा मनाने की चहल पहल हर सरकारी दफ्तरों में शुरु हो जाती है औऱ हिन्दी दिवस के नाम पर करोड़ो रुपये पानी की तरह बहा दिया जाता है। चाहे वो राज्य की सरकारें हो या केन्द्र सरकार हो। हिन्दी को हमारे नेता राष्ट्रभाषा बनाने चाहते थे। गांधी जी ने सन् 1918 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने को कहा था और ये भी कहा कहा था कि हिन्दी ही एक ऐसी भाषा, है जिसे जनभाषा बनाया जा सकता  है।  14 सितंबर 1949 को हिन्दी को भारतीय संविधान में जगह दी गई पर दक्षिण भारतीय एवं अन्य कई नेताओं के विरोध के कारण राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के अनुरोध पर सन 1953 में 14 सिंतबर से हिंदी को राजभाषा का दर्जा दे दिया गया। परन्तु सन 1956-57 में जब आन्ध्र प्रदेश को देश का पहला भाषायी आधार पर राज्य बनाया गया तभी से हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की धार कुंद पड़ गई और इतनी कुंद हुई कि आज तक इसकी धार तेज नहीं हो सकी। औऱ राष्ट्रभाषा की बात राजभाषा की ओर उन्मुख हो गई। आज हिन्दी हर सरकारी दफ्तरो में महज सितंबर माह की शोभा बन कर रह गई है। हिन्दी को ब्यवहार में न को

चिंटू की Dulhania ’बनेंगी बंगाली ब्‍यूटी मणि भट्टाचार्य

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मुंबई ' चिंटू की फिल्‍म विवाह इस दिवाली सिनेमाघरों में होगी, लेकिन 'चिंटू की Dulhania', जो उनकी अपकमिंग फिल्‍म है, उसका मुहूर्त मुंबई में धूमधाम से संपन्‍न हो गया। इस दौरान चिंटू से जब पूछा गया कि उन्‍होंने किसकी पसंद से अपनी दुल्‍हनियां को चुना है। इस पर उन्‍होंने हंसते हुए कहा कि हां, दुल्‍हनियां मैंने पसंद किया है और इशारा पास बैंठी मणि भट्टाचार्य की ओर कर दी, जो फिल्‍म 'चिंटू की Dulhania' में उनके अपोजिट लीड रोल में नजर आने वाली हैं। हां, दुल्हनियां मैंने पसंद किया है और वह बंगाली ब्‍यूटी क्वीन मणि भट्टाचार्य ही हैं। हमारे बीच की बाउंडिंग बेहद अच्‍छी है, इसलिए मैंने अपनी दुल्‍हनियां खुद पसंद की है।' भोजपुरी सिनेमा के युवा सुपर स्‍टार प्रदीप पांडे चिंटू ने मुंबई में मीडिया के सामने ये एक्‍सेप्‍ट किया है कि उन्‍होंने अपनी दु‍ल्‍हनियां खुद पसंद कर ली है। हालांकि चिंटू इस दिवाली के अवसर पर फिल्म 'विवाह' भी कर रहे हैं, लेकिन उससे पहले ही उन्‍होंने 'चिंटू की Dulhania' कौन होगी, इससे पर्दा खुद चिंटू ने ही उठाया है। मणि भट्टाचार्य इससे पहले जीना तेर

डॉ.पी.के.मिश्रा ने PM के प्रधान सचिव का कार्यभार संभाला

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हाल ही में डॉ. मिश्रा को संयुक्त राष्ट्र सासाकावा पुरस्कार 2019 से सम्मानित किया गया है। आपदा प्रबंधन में यह सबसे प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार है। डॉ. मिश्रा ने यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स से अर्थशास्त्र / विकास अध्ययन में पीएचडी तथा विकास अर्थशास्त्र में एम.ए. की डिग्री हासिल की है। उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स से अर्थशास्त्र में एम.ए. किया था। डॉ. मिश्रा 1970 में जी.एम. कॉलेज (संबलपुर विश्वविद्यालय) से प्रथम श्रेणी में बी.ए.ऑनर्स (अर्थशास्त्र) की परीक्षा पास की थी। ओडिशा के सभी विश्वविद्यालयों में अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी हासिल करने वाले वे एकमात्र छात्र थे। प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव के रूप में डॉ. प्रमोद कुमार मिश्रा की नियुक्ति की गई है। डॉ. मिश्रा को कृषि, आपदा प्रबंधन, ऊर्जा क्षेत्र, ढांचागत संरचना, वित्तीय प्रबंधन और नियामक मामलों से संबंधित कार्यक्रमों के प्रबंधन का लंबा अनुभव है। अनुसंधान, नीति निर्माण, कार्यक्रम / परियोजना प्रबंधन और प्रकाशन में उनका प्रदर्शन शानदार रहा है। उन्हें नीति निर्माण और प्रशासन का लंबा अनुभव रहा है। डॉ. मिश्रा प्रधानमंत्री के अपर मुख्य

इंटरनेट सूचना का भंडार है, लेकिन पुस्‍तकें ज्ञान प्रदान करती हैं : अमित खरे

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25वां दिल्ली पुस्तक मेला 11 सितंबर से 15 सितंबर, तक प्रगति मैदान, नई दिल्ली में आयोजित किया जा रहा है। इसका आयोजन फेडरेशन ऑफ इंडियन पब्लिशर्स और आईटीपीओ ने किया है। महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती के अवसर पर  पुस्तक मेले की विषय-वस्‍तु उन्‍हें समर्पित की गई है। नयी दिल्ली -सूचना एवं प्रसारण सचिव  अमित खरे ने प्रगति मैदान, नई दिल्‍ली में दिल्ली पुस्तक मेले में प्रकाशन विभाग के स्टॉल का उद्घाटन किया। खरे ने प्रकाशन विभाग की पांच पुस्‍तकों का विमोचन किया। इस अवसर पर राष्‍ट्रीय गांधी संग्रहालय के निदेशक ए.अन्‍नामलाई भी मौजूद थे।  अमित खरे ने हिन्‍दी और अंग्रेजी के अलावा अनेक भारतीय भाषाओं में महान विभूतियों के जीवन परिचय से जुड़ी पुस्‍तकें प्रकाशित कर लोगों को उनके करीब लाने के लिए प्रकाशन विभाग के प्रयासों की सराहना की। उन्‍होंने इंटरनेट के युग में पुस्‍तकों की फलती-फूलती  संस्‍कृति की चर्चा करते हुए कहा, हालांकि इंटरनेट सूचना का खजाना है, लेकिन पुस्‍तकें ज्ञान प्रदान करती है। गांधीवादी विचारों पर पुस्‍तकों का एक प्रमुख प्रकाशक होने के नाते, प्रकाशन विभाग ने प्रिंट और ई-संस्‍करण में महात्

अभिनय के क्षेत्र में छोटे पर्दे से बड़ी पहचान बनाई शंभु राणा ने

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ये रिश्ता क्या कहलाता है star plus, रोशनी zee tv, क्राइम पेट्रोल सोनी tv ,cid sony tv ,ips डायरी dd national, सावधान इंडिया ,स्टार tv इश्क का रंग सफेद कलश tv, मोहल्ला मोहब्बत वाला सब टीवी हाल ही में मेरी बीवी हानिकारक सीरियल में काम कर चुके शंभु राणा की हिंदी फिल्म "सात दिन की ससुराल" की शूटिंग में व्यस्त है खास बात यह कि वह भोजपुरी फिल्म "कानून हमारा मुट्ठी में" भी काम कर चुके हैं साथ ही शंभु राणा की आने वाली भोजपुरी फिल्म "विजेता" तथा "बुधना की सुहागरात " है , वह ऐड फिल्म शैंपू park Aveanue में भी  काम कर चुके है शंभु राणा अपने अभिनय के दम पर आज जिस मुक़ाम पर हैं यह लोकप्रियता इन्हें आसानी से नहीं मिली , इसके पीछे कड़ी मेहनत और संघर्ष है आज टीवी के अनेक सीरियल और फिल्म में दर्शकों ने उनके अभिनय को सराहा और पसंद किया है।  नौकरी की तलाश में शंभू राणा मुंबई गए थिएटर में काम किया तथा हिंदी सीरियल नुक्कड़ नाटक आदि में काम कर अपने अभिनय से सभी का ध्यान अपनी तरफ खींचा।   इन्होंने अपने जीवन में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा जिंदगी भले सबक सिखाती रही पर वह अ

हमारी तीसरी पीढ़ी किसी रिश्ते को नहीं जानती

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मानव जीवन में जिस प्रकार मौसम का प्रभाव पड़ता है उसी प्रकार लगातार रिश्तों में भी पीढ़ी दर पीढ़ी बदलाव होता चला आ रहा है। इस का प्रमुख कारण विघटित परिवार और पलायन ही कहा जा सकता है। गांव छोड़ कर लोग रोजी-रोटी की तलाश में शहरों की ओर चले जा रहे हैं। एक जमाना ऐसा भी था लोग घर और जन्म भूमि छोड़ना ही नहीं चाहते थे। कृषि  और पशुपालन मुख्य व्यवसाय था, पहाड़ी क्षेत्र में बने सीढ़ी नुमा खेत सामूहिक साझेदारी और रिश्तेदारों के बल पर ही बने होंगे। इन भू भागों का नाम सीमा और रिश्तेदारों के सहयोग के नाम पड़े होंगे ,गुडियल खील गुड़ियाल जाति के लोगों द्वारा बनी जमीन,रिखीखेत,रिखी नाम के आदमी ने बनवाई होगी।कैलाड की खोली, सीमा और रिश्तेदारों के सहयोग से बनी जमीन।  किसी भी समारोह अच्छे या बुरे में नाना नानी,मा मा मामी जीजा फूफा  सास ससुर का समलित होना रिश्तों की पहचान थी। मेलों में सारे मित्र आपस में मिला करते थे। आज  न मेले हैं नहीं गांवों में रिश्तेदार। यहां तक पीढ़ी दर पीढ़ी पहिचान भी गायब है पता ढिकाना भी खोज कर नहीं मिलता।  वह जमाना जब संयुक्त परिवार होते थे, विशाल परिवार, दादी की गोद में पांच दस बच