अक्षम्य अपराध
डॉ• मुक्ता विनायकी– एक हथिनी के साथ घटित क्रूरतम हादसे ने पूरे मानव समाज को कर दिया उद्वेलित और झिंझोड़ कर रख दिया मनोभावों को और कटघरे में खड़ा कर पूछ रही सवाल आखिर क्या था उसका कसूर क्यों की गई अकारण उसकी व उसके गर्भस्थ शिशु की निर्मम हत्या? इक्कीसवीं सदी का मानव हो गया है संवेदनशून्य औ निरंकूश तज शालीनता व नैतिकता जीवन-मूल्यों को त्याग मर्यादा की परिभाषा व अहमियत भी भुला बैठा क्या इस जहान में किसी निर्दोष के प्राणों की कोई कीमत नहीं रही मूक प्राणियों की हत्या करना बेदर्द मानव का शुग़ल हो गया वह क्यों दायित्व-विमुख हो गया सुना था! आज का मानव कन्या भ्रूण की जन्म से पूर्व हत्या कर सुक़ून पाता क्यों आजकल मासूमों की हत्या करना उसका जुनून हो गया बदल रहा ज़माने का चलन अब उसका कार्य-क्षेत्र बहुत विस्तृत हो गया शर्म आती है यह सोच कर क्यों वह जानवर से भी बड़ा जानवर हो गया? मैं विनायकी भूख से आकुल-व्याकुल चली आयी थी मानवों की बस्ती में इस विश्वास से… मिल जाएगा मुझे आहार और मेरे गर्भस्थ शिशु की क्षुधा हो जाएगी शांत और वह रह सकेगा सुरक्षित कहां जानती थी मैं– मानवों की बस्ती में आजकल शैतानों व दरिंद