कविता // आत्म निर्भर भारत
एस० एस० बिष्ट आत्म निर्भर भारत भारतीयों का लक्ष्य निर्माण बन गया है भारत माता का प्रतीक संस्कृति सभ्यता की पहचान बन गया है धन सम्पदा वैभव और शक्ति स्वर्णिम भारत की प्राचीन शान हैं भारत अविनाशी खण्ड है आत्मा भी अमर अविनाशी सŸाा है मन मन्दिर की अदृश्य चैतन्य मूरत है आत्मा भारतीय संस्कृति सभ्यता की पहचान है आत्मा ज्ञान पवित्रता प्रेम सुख शान्ति आत्मा के सत्गुण है आत्म निर्भर भारत का यर्थात वास्तविक मर्म क्या है कर्म क्षेत्र पर श्रेष्ठ कर्म मानवता का धर्म समझाता है आत्म निर्भर भारत आत्म अभिमानी का लक्ष्य दर्शाता है वक्त इतिहास को दोहरा रहा है दिशा व दशा बदलनी होगी एक जुट हो सहयोग की आहुति इस महायज्ञ में देनी होगी आत्म निर्भर भारत नवयुग की आगामी शुरूआत है हर वस्तु हो स्वदेशी आत्म निर्भरता की यही तो बात है इस महायज्ञ में बस इतनी सी ही आहुति देनी है राष्ट्र हित के लिए मात्र सहयोग कि अंजली देनी है आत्म निर्भर भारत हमारी सोच व कर्मों पर आधारित होगा भारत भाग्य विधाता बन भारत का नव निर्माण करना होगा श्रेष्ठ कर्म ही भारत की संस्कृति और सभ्यता को दर्शाता है-2 आत्म निर्भर भारत आत्मा और भारत माता