कहानी-'अमूल्य उपहार'
० सुरेखा शर्मा ० घर में खूब चहल-पहल थी । शादी जैसा माहौल था ।हो भी क्यों न ,भाभी का पहला करवा व्रत जो था।खूब खरीदारी की गई थी भाभी के मायके वालों के लिए । दीपावली के उपहारों की पैकिंग चल रही थी ।सारा परिवार भाभी के मायके जाने की तैयारी में व्यस्त था।माँ ड्राइवर को बार-बार एक ही बात कहे जा रही थी , 'सब सामान ध्यान से गाड़ी में रखना ।कोई चीज छूट न जाए। फलों का टोकरा आया या नहीं ?' 'आ गया माँ जी। सब हो गया, आप चिंता न करो ।'बड़ी भाभी सुबह से तैयारी में जुटी थी। चुपचाप इधर से उधर समान रख रही थी , पर आज उनके सलोने से मुख पर चमक नही थी ।बड़ी भाभी के मायके वालों को तो इतना सम्मान मां ने कभी नही दिया । अभी विचार मन्थन चल ही रहा था कि भाभी चाय का कप देते हुए बोलीं , 'दीदी चाय पी लीजिए अदरक वाली ,हमने स्पेशल आपके लिए बनाई है।हम देख रहे हैं आप कल से बहुत उदास हैं।क्या ननदोई जी की याद आ रही है? ' 'अरे भाभी ,हमारी छोडिये , आप बताइए कि आज चांद से मुखड़े पर चिंता की काली बदरी क्यों छाई हुई है ?' भैया ने कुछ कह दिया क्या?"'नहीं दीदी ऐसी कोई बात नहीं ?'&