देश में मेकाले शिक्षा के प्रभाव के कारण संस्कृत को अंग्रेज़ी शिक्षा का कोपभाजन बनना पड़ा

० योगेश भट्ट ०  
नयी दिल्ली। यूजीसी के निर्देश के आलोक में इस बार शिक्षक दिवस को ' शिक्षक पर्व ' के रुप में मनाया जा रहा है । इसी उपलक्ष्य में सीएसयू , दिल्ली के कुलपति की अध्यक्षता में इस पांच दिवसीय शिक्षक पर्व का उद्घाटन किया गया ।  इस अवसर पर जाने माने शिक्षाविद्, तुलनात्मक धर्मशास्त्र के विद्वान् तथा राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित प्रो वाचस्पति शर्मा त्रिपाठी सारस्वत अतिथि के रुप में बोलते हुए कहा कि देश में मेकाले शिक्षा के प्रभाव के कारण संस्कृत को अंग्रेज़ी शिक्षा का कोपभाजन बनना पड़ा जिसके कारण समाज में गुरु की महत्ता घट ही गयी । इसके कारण भी देश की स्थिति थोड़ी बिगड़ती गयी । प्रो शर्मा का यह भी विचार था कि यद्यपि कालिदास ने शिक्षक शब्द का प्रयोग किया है । 
लेकिन भारतीय परंपरा में में गुरु , आचार्य तथा उपाध्याय के रुप में गुणवत्ता के अनुसार उनका नाम रखा गया है । गुरु इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण हुआ करते थे क्योंकि याज्ञवल्क्य स्मृति के अनुसार गुरु का शिष्यों के प्रति गर्भाधान संस्कार से लेकर उपनयन संस्कार तक शिष्यों के प्रति गुरु का उत्तरदायित्व होता था ।उसके बाद आचार्य का स्थान था क्योंकि ये आचार्य अपने शिष्यों को ज्ञान देने के साथ उपनयन का भी ध्यान रखते थे क्योंकि उपनयन के बाद ही वेद अध्ययन संभव हुआ करता था । तीसरे स्थान पर उपाध्याय का होता था जो किसी वेद के एक भाग को पढ़ाते थे ,वह भी अपने अर्थ लाभ के लिए । अतः प्रो शर्मा का मानना था कि आज के अधिसंख्य शिक्षक उपाध्याय ही लगते हैं ।
कार्यक्रम के अध्यक्ष तथा कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी ने कहा कि यह बात सही है कि आज के लगभग सभी शिक्षकों को उपाध्याय तो कहा जा सकता है । लेकिन आज विश्वविद्यालय के बदलते संरचना तथा उनके ऊपर अन्य अकादमी उत्तरदायित्वों के कारण पारंपरिक गुरु या आचार्य बनने में कठोर परिश्रम की आवश्यकता है । लेकिन यह बात भी सच है कि आज के शिक्षक अपने जिस विषय को पढाते हैं ,कम से कम उनकों उनमें विशेषज्ञता अवश्य अर्जित करनी चाहिए । दुनिया में शिक्षक से बढ़ कर और कोई श्रेष्ठ पद नहीं । और हमें इस बात पर गौरव करना चाहिए कि हमारा जन्म परिवार,समाज तथा तथा देश को सुशिक्षित तथा निखारने के लिए ही हुआ है । हम आशा करते हैं कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 से और अधिक बहुआयामी प्रतिभा के ऊर्जस्वी शिक्षक समाज का निर्माण करेंगे । कुलपति ने आगे यह भी कहा कि चाहे जो युग हो शिक्षक के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुण शील ही होता है । उसके बिना कोई बात नहीं श्रेष्ठ हो सकती है । कुलपति जी का मानना था कि छात्र तथा छात्राएं सारस्वत संतति होती है । अतः हर हालत में उनका सम्मान तथा साथ दिया जाना चाहिए ।

उन्होंने इस उपलक्ष्य में अपने विश्वविद्यालय संकाय सदस्यों तथा छात्र -छात्राओं के लिए ' शिक्षाश्री ' तथा ' शिक्षाभूषण ' जैसे अनेक पुरस्कारों को दिये जाने की उद्घोषणा की है जिसमें सीड मनी के रुप में विजेताओं को शोध आदि के खर्च तथा यात्रा आदि के लिए यह राशि दी जाएगी । चर्चित युवा विद्वान डा मधुकेश्वर भट्ट के निर्देशन में रुस से आये पीएचडी के शोध छात्र आन्द्रे रुजोहोलकी ने संस्कृत सीखने में भारत के गुरुकुलीय शिक्षा के महत्त्व को अंकन करते हुए केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के शैक्षणिक महत्त्वों पर प्रकाश डाला और रुजोहोलकी ने कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी, प्रो राधावल्लभ त्रिपाठी तथा प्रो ललित त्रिपाठी आदि आचार्यों का भी उल्लेख किया। भारतीय संस्कृत शिक्षकों की भी भूरि भूरि प्रशंसा भी की ।

इस कार्यक्रम में देश के विविध प्रदेशों में अवस्थित इस विश्वविद्यालय के सभी परिसर तथा आदर्श महाविद्यालय के शिक्षक, छात्र -छात्राएं तथा कर्मचारीगण आभासी माध्यम से भी जुड़े रहे । विश्वविद्यालय मुख्यालय के अकादमिक स्टाफ को कुलपति जी तथा सारस्वत अतिथि जी के द्वारा इस अवसर पर सम्मानित भी किया गया । प्रो बनमाली विश्वाल तथा प्रो कुलदीप शर्मा ने क्रमशः अतिथियों का स्वागत तथा धन्यवाद ज्ञापन किया । डा चक्रधर मेहर ने मंच का संचालन किया । इस पांच दिवसीय ' शिक्षक पर्व ' का संयोजिका तथा सह संयोजिका क्रमशः डा अमृता कौर तथा स्नेहलता उपाध्याय हैं ।

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