माँगते क्यूँ हो तुम,माँग लो सदगुरू को

० विनोद तकियावाला ० 
 आदि काल से ही हमारे यहाँ गुरु शिष्य की परम्परा है।इसी श्रंखला मे अपने जीवन के कुछ स्वर्णीम पल मुझे अपने सद्गुरू देव - माँ के सात्धिय में बिताने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।यहाँ पर उल्लेख करना जरूरी है कि जब गुरु के रूप स्वयं सद्गुरु ही आप के समक्ष आपका हाथ थाम लेता है,तो बात ही कुछ अलग होती है।मै अपने को बड भागी मानता हुँ कि मुझे सद्गुरू के रूप में महात्मा सुशील कुमार व ममतामयी 'करूणा की जीती जागती मुर्ति माँ विजया मिली ह
लेकिन श्रृष्टि के रचियता,पालन कर्त्ता के संदर्भ मे कुछ कहने या उनके संदर्भ मे कुछ लिपिबद्ध करना एक अति कठिन कार्य है,ठीक वैसे जैसे सम्पूर्ण विश्व को,अपने दिव्य प्रकाश से प्रकाशित करने वाले भुवन भास्कर को माचिश की एक छोटी सी प्रज्वलित तीली से प्रकाश दिखाने की तुच्छकोशिश है।आज मै अपने आप को असहाय पा रहा हुँ।

अप्रैल माह का आगमन हो गया है। यह माह हम इस्सयोगी भाई - बहन के लिए विशेष महत्व का मास है । यह परम चैत्यन का मास है।क्योकि करीब दो दशक पूर्व इस मास के 23 - 24 सद्गुरुदेव भौतिक शरीर का परित्याग कर सम्पूर्ण जगत के कल्याण हेतु बहामण्ड मे व्याप्त हो गये थे।अप्रैल माह को परम चैतन्य मास के रूप मानते है। मै अपने आप को सौभाग्य शाली मानते है ',हम सभी इस्सयोगी गुरु भाई बहन जिन्होने पूर्ण श्रद्धा-समपर्ण से अपने आप को अर्पित कर र्निभिक व निशचिन्त हो गए है।
गुर -शिष्य की परम्परा अति प्राचीन है।हमारे धर्म गन्थो मे इस बात का उल्लेख है कि जब कोई शिष्य -अपने गुरु के शरण मे अपने आप को पूर्ण श्रद्धा समपर्ण से अर्पित कर उनके बताये मार्ग पर चलता है तो शक्तिमान सद्गुरु सारे योग क्षेम अपने अर्जित शक्ति से भोग प्रालब्ध बदल देता है। इस सम्बन्ध मे सदगुरु देव - माँ के सानिध्य-सामीप्य मे बिताये हुए स्वर्णिम पल के यादों के पिटारो से एक घटना का उल्लेख करना चाहता हुँ।ये बात सन 2001 के माह 8 जुन की है।इन दिनो सद्गुरू देव - माँ जी अपने अध्यात्मिक प्रवास के गुरूग्राम मे आये हुए है।आप को यहाँ बताये दे कि जब भी सदगुरु देव - माँ जी गुरुग्राम मे आते थे हम सभी दिल्ली - एन सी आर के इस्सयोगियो के लिए आनंद - उत्सव का महोत्सव होता था ।प्रत्येक संध्या बेला को सद्गुरूदेव माँ के सान्ध्यि व सामीप्य मे दिव्य सत्संग की अथाह आनंद की गंगा मे डुबकी लगाते थे।

आज की यह संध्या मेरे लिए खास थी क्योकि मेरा आज भौतिक जन्म दिवस है,प्रातः काल सेसद्गुरुदेव -माँ जी के दिव्य सानिध्य मे अपना भौतिक जन्म दिवस मनाने का हमे स्वर्णिम अवसर मिलने वाला है। आज सदगुरू - देव माँ काआर्शिवाद पाने की ललक मे सुबह से मन मे प्रार्थना कर रहे थे कि सद्गुरुदेव -माँ जी से विशेषअद्वितीयआर्शवाद किस तरह मिल जाय।इस दौरान मे नोएडा के सेक्टर 18 के बाजार से 3 बेत की छड़ी ले कर उसे रंग कर गुरुधाम (दिल्ली )के लिए निकल पड़े।रास्ते मे मन - मन प्रार्थना कर रहे थे ' हे माँ जल्दी से पहुँच जाए तथा आज के दिन सदगुरुदेव - माँ के युगल श्री चरणो विशेष भेट (बेत की छडी)चुपके से अर्पित कर सके ।

 कुछ इस्सयोगी गुरु भाई बहन वैठते थे ' मै भी चुपके से सद्गुरुदेव मॉ के आसन पर सबकी नजर से छुपते छुपाते हुए गुप्त भेट(छड़ी)को रख कर बैठ गये,कुछ पल के बाद सद्गुरू देव - माँ जी की दिव्य हम सभी को देते हुए संध्या भजन - सत्संग नित्य प्रतिदिन के प्रारम्भ हो गये ।मैने भी सद्‌गुरु देव - माँ से मन से नमन कर दिव्य सत्संग का लाभ लेने लगा।यहाँ पर मै स्पष्ट कर दूँ कि पहले ब्रह्मण्ड साधना 7:45 से 8 :oo बजे यानि 15 मिनट की होती थी।बाहामण्ड संध्या साधना के बादअमृत रूपी चाय की प्रसाद उपस्थित सभी इस्सयोगी भाई बहनो के संग मै भी ले रहा है।

 बीच- बीच सद्गुरुदेव - माँ जी इस्सयोगीयो की कुशल क्षेम पूछ रहे थें।तभी सद्गुरु देव ने अपनी दिव्य दृष्टि डालते हुए कहा कि - विनोद कैसे हो ' चलो मेरे समाने आ जाओ,मै सद्गुरूदेव की ओर बढे 'और आगे आओ मै सदगुरु देव के आसन के ऊर्जा का संचार क्षेत्र के पास पहुँच गये थे।तभी उन्होने अपने शिव हस्त से आगे की ओर बढ़ाते हुए ये लो अभिमंत्रित (जाप )लौग का प्रसाद , तभी अनायास ही मेरे मुःख से निकल पड़ा कि गुरुदेव मुझे नही चाहिए 'मेरे पास पहले से रखा हुआ है।

मेरे इतना कहते ही सद्गुरुदेव का महारोद्ध रूप धारण करते हुए कहा कि चलो आगे आओ,आसन पर रखी छडी ले कर मेरे से पुनः बोले कि दोनो हथेली समाने लाओ फिर क्या - मेरी - --- -- हथेली -और दुःख हरनी छडी का मघुर मिलन गुरुघाम मे बैठे सभी इस्सयोगी इस अस्समरणीय अलौकिक घटना के साक्षी थे '
कुछ पल बाद मे सारी स्थिति सामान्य हो गई थी।सद्गुरुदेव ने कहा कि विनोद जब गुरु कुछ कहे तो उनकी बाते कभी भी काटनी नही चाहिए ' क्यु तुम हमेशा अपनी गुरु की बाते काटते हो ' मुझे बिलकुल ही अपने आसान से नजदीक लाते हुए अपनी शिव हस्त को मेरे दोनो हथेली पर रख कर स्नेह प्रेम से फेरते हुए - बोल रहे थे ' आह मेरे बच्चे को कितनी चोट लगी है।कितना दर्द हो रहा होगा मेरे बच्चें को।इस अलौकिक क्षण का आनंद का वर्णन मेरे लिए सम्भव नही है। तभी मेरी जगत जननी करूणामयी माँ ने अपनी हाथो के प्रसाद स्वरूप केले बढाते हुए विनोद प्रसाद खा लो, 

तभी सदगुरुदेव ने मॉ जी से प्रसाद स्वरूप केले को लेते हुए कहा कि ये पगला है।कही छिलके वाला केला खा ले ।माता जी लाये मुझे आप केले दे दे और केले के छिलके स्वंय हटाते हुए मुझे खिलाने लगे, शायद ये लीला धर की कोई लीला रही हो,सद्गुरूदेव - मॉ अपने बच्चे का कब,कैसे व कहाँ कल्याण करते है हमे पता नही होता ।वे त्रिकाल दर्शी है।सद्गुरु देव की बाते हमेशा ही रहस्यमयी होती है।21,वें महानिवार्ण दिवस के पुनीत पावन अवसर पर हम अपनी भाव की भावाजंली अर्पित करते हुए कहना चाहता हुँ कि" इन हथेलियो पर दिये थे,आपने छड़ी के निशान। मै रहा आप से हमेशाअंजान पल मे ही कराते थे आप बह्म का ज्ञान॥

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