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प्रदीप पांडे चिंटू की फिल्‍म 'नायक' बनी बॉक्‍स की सेंसेनल हिट

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मुंबई - सुपर स्‍टार प्रदीप पांडे चिंटू और तेलगु की खूबसूरत अदाकारा पावनी स्‍टारर फिल्‍म 'नायक' भोजपुरी बॉक्‍स ऑफिस की सेंसेनल हिट बन चुकी है। पहले मुंबई और बिहार में धमाका करने के बाद इस फिल्‍म ने यूपी में भी सफलता के झंडे गाड़ लिये हैं। ट्रेड पंडितों के अनुसार, रमना मोगली निर्मित और निर्देशित यह फिल्‍म अब रिकॉर्ड की ओर आगे बढ़ रही है। दर्शकों के बीच चिंटू की इस फिल्‍म का क्रेज काफी देखने को मिल रहा है, जिसे आने वाले दिनों में फिल्‍म के करोबार को आगे और बढ़ने की संभावना है। फिल्‍म की सफलता से उत्‍साहित रमना मोगली ने कहा कि हमने एक प्रयोग किया था - दो डिफरेंट भाषा और कल्‍चर को मिक्‍स किया था। हमारा प्रयोग सफल रहा है और हमारी फिल्‍म दर्शकों को पसंद आ रही है। इसकी एक वजह है कि फिल्‍म में नयापन बहुत देखने को मिले। तकनीशियन से लेकर ऑन स्‍क्रीन के कलाकारों के चेहरे भी नये थे। फिल्‍म की सबसे मजबूत बात कहानी थी, जिसके पात्रों को चिंटू, पावनी और प्रभाकर जैसे कलाकारों ने जीवंत कर दिया। यही वजह है कि फिलम सेंसेनल हिट साबित हुई है। अभी फिल्‍म को और जगहों पर रिलीज होना बांकी है। हमें उम्‍म

भोजपुरी में पहली बार बायोपिक ‘मुकद्दर का सिकंदर’

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मुंबई - वसीम खान की पहचान इंडस्‍ट्री में लीक से अलग हटकर फिल्‍में प्रोड्यूस करने वाले प्रोड्यूसर की है। तभी वे अब भोजपुरी सिनेमा इंडस्‍ट्री से बायोपिक का सूखा खत्‍म करने को तैयार हैं। उनकी बायोपिक 'मुकद्दर का सिकंदर' में सुपर स्‍टार दिनेशलाल यादव और आम्रपाली दुबे मुख्‍य भूमिका में हैं। हालांकि अभी तक इस बात का खुलासा नहीं किया गया है। इस बारे में वसीम खान और फिल्‍म के पीआरओ संजय भूषण पटियाला ने कहा कि बायोपिक 'मुकद्दर का सिकंदर' किस शख्‍स की कहानी है, इसका खुलासा फिल्‍म रिलीज से कुछ वक्‍त पहले किया जायेगा। हालांकि उन्‍होंने इस बात की ओर इशारा किया कि फिल्‍म बड़ी बजट की है। बॉलीवुड में मैरी कॉम, एम एस धोनी, संजय दत्त जैसे कई दिग्‍गज सेलिब्रिटी की बायोपिक आ चुकी है और कईयों की आने वाली है, लेकिन आज तक भोजपुरी सिनेमा में एक भी बायोपिक देखने को नहीं मिला है। जबकि अक्‍सर देखा गया है कि बायोपिक को दर्शक खूब पसंद करते हैं। ऐसे में अब तैयार हो जाईये भोजपुरी सिनेमा की पहली बायोपिक 'मुकद्दर का सिकंदर' के लिए, जिसे लेकर आ रहे हैं निर्माता वसीम एस खान। उन्‍होंने कहा कि फिल

इन दिनों झूठ की मेन्युफेक्चरिंग हो रही है,समूची राजनीति घृणा और द्वेष के इर्द-गिर्द घूम रही है:उदय प्रकाश

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जयपुर - देश   भर   के  26  प्रदेशों   से   लगभग   छह   सौ   लेखकों   ने   इस   सम्मेलन   में   भाग   लिया। सम्मेलन में तमिल, तेलूगु, कन्नड़, मलयालम, मराठी, बंगाली, गुजराती, उड़िया, असमिया, डोगरी, मैथिली, भोजपुरी, पंजाबी, राजस्थानी आदि विभिन्न भाषाओं के लेखकों के शामिल होने से भारतीय भाषाओं का एक अनूठा संगम लेखकों के इस सम्मेलन में देखने को मिला है।   प्रलेस के राष्ट्रीय सम्मेलन   का   प्रारम्भ   अभिव्यक्ति   के   खतरे   उठाने   ही   होंगे   सत्र   से   हुआ ,  जहां   जाने माने   चिंतक   और   भाषाविज्ञ   गणेश   एन .  देवी   ने   सम्मेलन   का   उद्घाटन   किया।   उन्होंने   मजबूती   से   कहा   कि   अब यह समय आ गया है कि समान विचारधारा के सभी लेखकीय और गैर लेखकीय संगठनों को अपने समूचे मतभेद भूलाते हुए एकजुट होकर आवाज़ उठानी होगी कि हम दुनिया को बदलना चाहते हैं। शब्दों   का   एक   अनूठा   संसार।   यहां   एक   ओर   विश्व   पटल पर प्रभाव डालने वाले   महत्वपूर्ण   लेखकों   फै़ज़   अहमद   फ़ैज़  |  मैक्सिम   गोर्की  |  सिमॉन   द   बोउआर  |  चेखव  |  पुश्किन  |  भीष्म   साहनी  |  हरिशंकर   परसाई

अंजना टंडन एवं जोशना बैनर्जी को 'दीपक अरोड़ा स्मृति सम्मान

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जयपुर । बोधि प्रकाशन की 'दीपक अरोड़ा स्मृति पांडुलिपि प्रकाशन योजना' के चौथे वर्ष में चयनित-प्रकाशित दो काव्य पुस्तकों का लोकार्पण बोधि सभागार में हुआ। इस दौरान योजना में चयनित कृतियों की रचनाकार अंजना टंडन एवं जोशना बैनर्जी को 'दीपक अरोड़ा स्मृति सम्मान-2019' प्रदान किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि एवं दूरदर्शन के पूर्व निदेशक कृष्ण कल्पित थे एवं अध्यक्षता प्रसिद्ध कथाकार तथा जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. सत्यनारायण ने की। कार्यक्रम का संयोजन फिल्मकार और प्रतिष्ठित लेखक अविनाश त्रिपाठी ने किया। इस दौरान दिल्ली से पधारे कवि एवं आलोचक रवीन्द्र कुमार दास ने दीपक अरोड़ा के रचनाकर्म पर विस्तार से चर्चा की। योजना के निर्णायक मंडल के सदस्य गोविन्द माथुर ने पांडुलिपियों की चयन प्रक्रिया पर अपना वक्तव्य दिया। मुख्य अतिथि कृष्ण कल्पित ने कवि दीपक अरोड़ा को याद करते हुए कहा कि वे बेहद प्रतिभावान कवि थे। उनका असमय चले जाना साहित्य की क्षति है। उन्होंने चयनित पुस्तकों पर अपनी पारखी टीप भी दी। कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. सत्यनारायण ने चयनित पु

हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है इसको महत्व देना हम सब का कर्तव्य बनता है

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मसरख  - हिंदी दिवस की अवसर पर जैन पब्लिक स्कूल में भाषण प्रतियोगिता का भव्य आयोजन किया गया। इस अवसर पर स्कूल प्रबंधन समिति के मुकेश कुमार तुलसीदास भारतेंदु हरिश्चंद्र रामधारी सिंह दिनकर आदि कवियों को याद कर उस पर पुष्प अर्पित किया गया। जैन पब्लिक स्कूल के प्राचार्य राजीव सिंहा की नेतृत्व में यह कार्यक्रम किया गया। शिक्षक दिनेश कुमार ,धनंजय कुमार ,अनिल कुमार ,सविता सिंह ,खुशबू कुमारी आदि लोग मौजूद रहे अपने संबोधन में मुकेश कुमार ने कहा इंग्लिश मीडियम में पढ़ने के साथ-साथ हिंदी का भी ज्ञान बहुत जरूरी है. हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है इसको महत्व देना हम सब का कर्तव्य बनता है, इस की गरिमा बनाए रखना चाहिए । हिंदी के कवि तुलसीदास, सूरदास, प्रेमचंद आदि कवियों का उन्होंने उदाहरण दिया। 

डॉ संजीव भानावत राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी के स्वर्ण जयंती समारोह में सम्मानित

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               जयपुर - राजस्थान विश्वविद्यालय के जन संचार केन्द्र के पूर्व अध्यक्ष डॉ संजीव भानावत को  हिंदी दिवस के अवसर पर जयपुर में  राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी के स्वर्ण जयंती समारोह के दौरान सम्मानित किया गया। अकादमी की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में अकादमी के लिए पुस्तक लिखने वाले लगभग 180 लेखकों को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सम्मानित किया। समारोह में उच्च शिक्षा मंत्री भंवर सिंह भाटी, प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा मंत्री गोविन्द सिंह  डोटासरा, तकनीकी एवं संस्कृत शिक्षा मंत्री डॉ. सुभाष गर्ग, शिक्षा सचिव वैभव गालरिया,  आयुक्त कॉलेज शिक्षा प्रदीप कुमार बोरड़ एवं  राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी के निदेशक डॉ. बी.एल.सैनी भी उपस्थित थे।    उल्लेखनीय है प्रो भानावत ने अकादमी के लिए ग्यारह पुस्तकों का लेखन व संपादन किया है। ये सभी पुस्तकें मीडिया के विविध पक्षों पर लिखी गई हैं। प्रो भानावत  राजस्थान साहित्य अकादमी और उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान  सहित विभिन्न संगठनों एवं संस्थाओं  की ओर से भी सम्मानित हो चुके हैं। प्रो भानावत यूजीसी सहित अनेक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय शैक्षिक एजेंसियों

लर्नर ड्राइविंग लाइसेंस के लिए ऑनलाइन आवेदन कर 790 रुपए का करे भुगतान:सारण डीटीओ

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छपरा - बिहार , ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के लिए दलालों के चक्कर में नहीं पड़े। ड्राइविंग लाइसेंस बनाने की प्रक्रिया ऑनलाइन कर दी गई है ड्राइविंग लाइसेंस से पूर्व लर्नर लाइसेंस के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं  जहां उनका फोटो लेकर 1 सप्ताह में ड्राइविंग लाइसेंस जारी कर दिया जाएगा। लर्नर लाइसेंस जारी होने पर 1 महीने के बाद तथा 6 माह के पहले कभी भी 23 सौ रुपए का शुल्क जमा कर ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त किया जा सकता है। लर्नर वाहन चलाए जाने के दौरान उसके साथ ट्रेंड चालक का होना अनिवार्य है. जहां उनका फोटो लेकर 1 सप्ताह में ड्राइविंग लाइसेंस जारी कर दिया जाएगा। लर्नर लाइसेंस जारी होने पर 1 महीने के बाद तथा 6 माह के पहले कभी भी 23 सौ रुपए का शुल्क जमा कर ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त किया जा सकता है। लर्नर वाहन चलाए जाने के दौरान उसके साथ ट्रेंड चालक का होना अनिवार्य है. ताकि जोधा ले आजकल चल रही है उसका अंकुश लगे

दिल्ली दिव्यांग शिक्षक संघ द्वारा मीटिंग का आयोजन 

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नयी दिल्ली , दिल्ली के नांगलोई इलाके की कविता कॉलोनी में दिल्ली दिव्यांग शिक्षक संघ(DDTA) के तत्वधान में दिल्ली के सरकारी विद्यालयों में कार्यरत अध्यापको की मीटिंग संपन्न हुई। मीटिंग की अध्यक्षता सीनियर अध्यापक करमवीर ने की। दिल्ली दिव्यांग शिक्षक संघ के अध्यक्ष जय सिंह अहलावत ने मंच सञ्चालन किया। इस मीटिंग में नीरज, उमेशचन्द शर्मा, संजय शास्त्री, अशोक, निजामुद्दीन कुरैशी सहित हजारों की संख्या में शिक्षक इकठ्ठा हुए। इस मीटिंग में लम्बे समय चली आ रही वेतन विसंगतियों पर  त्रिलोक बिष्ट ने विस्तार से प्रकाश डाला और बताया कि किस तरह सरकार ग्रुप बी में रखे गए शिक्षकों को कम वेतन दे रही है, इसमें 16290, 18460 और 18750 वेतन मान छठे वेतन आयोग में दिए जाने की बाबत बात का जिक्र किया। दिव्यांग श्रेणी से चयनित और कार्यक्रम के अध्यक्ष शिक्षक करमवीर ने दिव्यांग शिक्षकों के पदोन्नति में आरक्षण को ख़त्म किये जाने पर दुःख व्यक्त किया साथ ही 1993 से विभाग और कोर्ट की लडाई के अनुभव गिनाये। DDTA के जनरल सेक्रेट्री सन्दीप तोमर ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए शिक्षकों का अपने हितों की खातिर एक लम्बी लडाई लड़ने क

सच बोलने के लिए उकसाता हूं,घास चरने के लिए नहीं कहता-ओम थानवी 

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जयपुर - वरिष्ठ पत्रकार, सम्पादक और वर्तमान में हरिदेव जोशी पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, जयपुर के कुलपति ओम थानवी ने बताया कि वह ३७ वर्ष पहले भी प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन में उपस्थित थे। हालांकि वह दौर इतना भयावह और हिंसक नहीं था। चुप्पियों को तोड़ने पर ज़ोर देते हुए थानवी ने कहा - मैं बोलने के लिए उकसाता हूँ। घास चरने के लिए नहीं कहता,बोलने की बहुत ज़रुरत है। समाज में शोषित वर्ग की पीड़ाओं पर चर्चा हुई, वहीं आज़ाद कलम के दायरे पर संवाद हुआ। फासीवाद, राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक प्रतिरोध विषय पर सत्र हुआ, वहीं भारतीय भाषाओं में प्रगतिशील साहित्य विषय पर व्यापक चर्चा हुई।   सत्र में  राजकुमार   ने   बताया   कि   वर्तमान   समय   में   लेखक   संघ   सिकुड़ते   जा   रहे   हैं   और   जनता   विभाजित   होती   जा   रही   है।   इस   समय   की   मांग   है   कि   विकल्पधर्मिता   के   साथ   साहित्य   लेखन   हो।   लेखक   के   लिए   आवश्यक   है   कि   वह   जो   भी   रचे   अथवा   लिखे ,  पाठक   वर्ग   के   साथ   उसका   जुड़ाव   दिखे।   लेखन   सामान्य   जन   के   संघर्षों   तथा   समस्याओं   के

वर्तमान समय में देश में धर्मनिरपेक्षता नहीं बची

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प्र गतिशील लेखक संघ का राष्ट्रीय सम्मेलन तीन दिन चलेगा। जयपुर में 37 वर्षों के बाद यह अधिवेशन हो रहा है। देश भर से 26 प्रदेशों से लगभग छह सौ लेखक इस सम्मेलन में भाग ले रहे हैं।  यही वो जगह है,  यही वो फिज़ा है यहीं पर कहीं आप, हमसे मिले थे।  एक लोकप्रिय गीत की यह पंक्तियां समूचे परिवेश में गूंज रही थीं। अवसर था, प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से आयोजित 17वें राष्ट्रीय सम्मेलन का, जहां समूचे देश से आए रचनाकार – लेखक – विचारक सम्मिलित हुए हैं।  सत्र का संचालन कर रहे सम्मेलन के राष्ट्रीय संयोजक और राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव ईशमधु तलवार ने बताया कि 37 वर्ष पहले यह अधिवेशन जयपुर के इसी रवीन्द्र मंच पर आयोजित हुआ था। उस समय आज के राष्ट्रीय महासचिव राजेन्द्र राजन और अध्यक्ष मण्डल के सदस्य सुखदेव सिंह सिरसा सहित अनेक लोग उस सम्मेलन में शामिल हुए थे, जो आज भी यहां मौजूद हैं। उस समय वे युवा थे, जबकि अब 37 वर्षों के बाद वे विभिन्न पदों पर आ चुके हैं। साहित्य, संस्कृति तथा अभिव्यक्ति के विविध स्वरूपों से सराबोर एक सुन्दर सुबह, जिसका शुभारम्भ सांस्कृतिक मार्च से हुआ। यह मार्च अल्बर्ट हॉल पर

हिंदुस्तान में जन्मी हिंदी नहीं बनी महान

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। हिंदी की बिंदी । हिंदी की बिंदी मां के माथे की शान। हिंदी हिंदू मेरा भारत महान।। बिबिताओ का ये भारत, भाषाओं में अनजान। पंजाबी, उड़िया,असमी,तैलगू तमिल सभी महान। हिंदुस्तान में जन्मी हिंदी नहीं बनी महान। हिंदी हिंदू  भारत मां की शान। राष्ट्र भाषा हिंदी कब बनेगी महान।। बैदिक भाषा लुप्त हो चली, संस्कृत का भी अधूरा ज्ञान, बेद ऋचाओं का ये भारत विश्व में रहा महान। पशु पक्षी भी अपनी भाषा नहीं बदलते, बदल रहा भाषा केवल इन्सान। फिर हम कैसे बोलें हिंदी देश की शान। कब होगी राष्ट्र भाषा  हिंदी,मातृ भाषा की शान। तब सचमुच होगी हिंदी , गौरवशाली होगा हिंन्दुस्तान।। हिंदी की बिंदी भारत मां की शान।। ।। हिंदी दिवस के शुभ अवसर पर हिंदी को शत् शत् प्रणाम्।।

बच्चा बच्चा बोले हिंदी , हिंदी बहुत महान है

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हिन्दुस्तान ------ हिन्दुस्तान------ हिन्द देश की गौरव गाथा  हिन्दी ही बतलाती है अधरों पर मुस्कान लिये ये गीत प्यार के गाती है आंखों में जो भाव तैरते उस की ये पह्चान है बच्चा बच्चा बोले हिंदी  हिंदी बहुत महान है हिन्दुस्तान------- हिन्दुस्तान-------- साहित्य के प्राण इसी से इक इक शब्द है एतिहासिक देश के हर कोने मे हिंदी  दिल्ली पूना या नासिक पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण भाषा से उत्थान है बच्चा बच्चा बोले हिंदी  हिंदी बहुत महान है हिन्दुस्तान --------- हिन्दुस्तान ---------- सब भाषायें नदियों जैसी हिन्दी सागर जैसी है आकर सब मिल जाती इसमें लगती ममता जैसी है  वैज्ञानिक है तकनीकी है हिन्दुस्तान की शान है बच्चा बच्चा बोले हिंदी  हिंदी बहुत महान है हिन्दुस्तान -------- हिन्दुस्तान------- >>>>>>>>><<<<<<<<<   गीत            आओ  हम हिंदी में बाँटें  सुख- दुख और व्यव्हार सचमुच जीवन को मिल पाये इक अनुपम उपहार। सब भाषाओं का है संगम  संस्कृत है बुनियाद अपनी  ही कुछ भ्रष्टाचारी निकली है औलाद गैर मुल्क की भाषा से क्यूं करते इतना प्यार आओ हम हिन्दी

मानवीय गुणों में लगातार गिरावट आ रही है

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हमारा देश मानवीय गुणों के आधार पर जहां विश्व में श्रेष्ठे स्थान रखता था। आज मानवीय गुणों में लगातार गिरावट आ रही है। एक जमाना स्वतंत्रता के पश्चात ऐसा भी था जब देश में गरीबी का आलम था लोगों के पास खाना जुटाने के लिए पैसे नहीं हुआ करते थे। गांव के लोग आपस में एक-दूसरे की मदद किया करते थे बदले में काम करने वाले को अनाज या खाना दिया जाता था। पैसे का अभाव था फिर भी उसकी बड़ी कीमत थी रुपया चांदी का था । सोना वर्ष चौंसठ पैंसठ में पिच्चासी रुपए तोला था। लोगों के पास सोने चांदी के जेवरात हुआ करते थे,जो बड़े घरानों में होते थे, गरीब घर के लोग लड़के लड़कियों की शादी में मांग काम चलाते थे।थोड़े बहुत रुपये उधार या साहुकार से व्याज पर मिल जाता था। लड़के-लड़कियों की शादी या पैतृक कार्यो में गांव परिवार और रिश्तेदारों द्वारा अनाज रुपयों, घी, तथा गाय बकरी की मदद दी जाती थी। यह उस गांव की मानवता निशानी मानी जाती थी। आज ये सारी प्रथाएं समाप्ति की ओर हैं । उस समय की नौकरी अधिकतर फौज की होती थी।पढा लिखा तो दूर अनपढ़ जवान भी सेना में भर्ती हो जाता था। मेरे ताऊजी सुवेदार थे उनकी मृत्यु पर ताई जी को ९रुपये प