पितृ तो वटवृक्ष हैं
।। पितृ देवो भव ।। पितृ तो वटबृक्ष हैं, उनकी जड़ हैं हम। उनके सुयोग्य कर्मो के, फलों से उत्पन्न हैं हम।। जिनकी शाखाओं में हम झूले। जड़ चेतन से बढ़े कदम। पितृ तो वटबृक्ष हैं उनकी जड़ें है हम।। पितृ ऋण तो चुका न पायें, श्रद्धासुम चढ़ायें हम। स्मृति पटल पर चित्र तम्हारे। विस्मित न कर पायें हम।। अर्चन पूजा जब करनी थी, भूल भुलैया में थे हम। आशीष तुम्हारा सदा मिले, प्यार मिले हरदम।। मौसम आते जाते हैं, पितृ पक्ष का अनूठा दर्शन। सदा कृपा दृष्टि बनी रहे, समस्त पित्रो को कोटि-कोटि नमन।