नारी संवेदना की पराकाष्ठा को स्पर्श करती "बेटियाँ"
घर आती हूँ तो तू नज़र नही आती, खिलखिलाती तेरी हँसी ,सुनाई नही देती दूर जाने का गम,महसूस न होने दिया माँ बेटी का रिश्ता दूर जाकर महसूस करा दिया । तेरे इशारों को देखा- अनदेखा कर देती थी खुदा से माफी माँगू,या गम में रहूं खुद समझने का कोई वक्त न निकाल पाई, बहुत प्यार करती थी तुमसे, पर कभी बता नही पाई •••••( इसी संग्रह से ) बात यों शुरू करूं तो किसी को कोई आपत्ति नही होनी चाहिए कि इस संकलन को संपादित कर प्रकाशित करने की क्या जरूरत थी लेखिका को ,वो भी एक ही विषय "बेटियों " पर ? मैं यहाँ बताना चाहूंगी कि इस संकलन में देश भर से आई रचनाकारों की चयनित रचनाएं हैं । यह संकलन बेटियों को समर्पित है। नारी मन अत्यंत संवेदनशील होता है इसमें कोई संदेह नहीं, लेकिन यहां पर नारी होने के साथ- साथ एक माँ का हृदय भी समाहित है। सविता चड्ढा ने यह संपादित अंक अपनी बेटी ' शिल्पी चड्ढा ' की स्मृति में निकाला है । अपने आत्मीय जनों को खो देने की पीड़ा वही समझ सकता है जो इस पीड़ा से गुजरा हो। ऐसी ही पीड़ा को झेला है सविता चड्ढा ने। जिनकी आत्मजा असमय ही काल का ग्रास बन गई थी। पर लेखिका ने