आवश्यकता है देश के चहुंमुखी विकास के लिए एक विचारधारा की
विजय सिंह बिष्ट उद्बुध्यध्वं समनस:संकाय: समग्निमिन्ध्वं बहव:सनीला:। दधिक्रामग्निमुषसं च देवीमिन्द्रावतोsवसे नि ह्वये व:।। (ऋग्वेद,१०/१०/१) अर्थात जिस समाज में सर्वाधिक लोग मन बचन और कर्म से संकल्पित होते हैं वह समाज उन्नतिशील होता है। वहां लोग तेजस्वी होते हैं। वैसे प्रत्येक व्यक्ति मन बचन और कर्म से भिन्न होते हैं।हर व्यक्ति का अपना दृष्टिकोण होता है। इसीलिए वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता रखता है।वह जो चाहे कर सकता है बोल सकता है, किंतु सामूहिक रूप से किया गया कार्य सर्वस्वीकार्य माना जाता है। चिंतन मनन और संकल्प से किया जाने वाले कर्म में सफलता निश्चित होती है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज का एक अभिन्न अंग माना जाता है। यदि वह अपने स्वार्थ में डूबा हुआ रहेगा तो समाज का हित करने की अपेक्षा समाज का अहित करने में संलिप्त हो जायेगा। आज आवश्यकता है देश के चहुंमुखी विकास के लिए एक ऐसी विचारधारा की जो भविष्य के राष्ट्र निर्माताओं को सही और सम्यक राह दिखा