लक्ष्य मेरा है छू लूं मैं नीलगगन का छोर
सुषमा भंडारी आशा और निराशा के हिंडोले पर झूलूं उत्साह और विश्वास के दम पे मैं लक्ष्य को छू लूं पवन साहस भरूं परों में निकलूं पंख पसार लक्ष्य का बाधक न कोई जीत मिले या हार कर्म ध्येय हो निश्चित मेरा हो खुशियों की डोर उम्मीदों के पंख लिये मैं उडती नभ की ओर मंजिल पाना दृढ़ निश्चय हो बाधायें निर्मूल नैया हो जब सत्य की भव में शांत रहें सब कूल यक्ष प्रश्न के हल भी मिलते कोशिश से सब मिलता उद्यम की दहलीज पे हरदम सुन्दर उपवन खिलता खुशियों की कोयल गाये और झूमे मन का मोर उम्मीदों के पंख लिये मैं उडती नभ की ओर जीवन सफल उसी दिन मेरा जब ना मानूं हार सही दिशा में चलती जाउँ हो जाउंगी पार सत्यकर्म और सत्यवचन ही जीवन का आधार ना ही कोई दुख हो जग में ना कोई लाचार जब ये स्वप्न आँख में तैरें हो जाउँ भाव - विभोर उम्मीदों के पंख लिये मैं उडती नभ की ओर लक्ष्य मेरा है छू लूं मैं नील - गगन का छोर =========================== ( आदमी ) गौरैया जब बना रही थी मेहनत और प्यार के तिनकों से सुन्दर घर तभी आदमी ने सीख लिया था उसे तोडने का हुनर गौरैया अब भी भटक रही है----------- जब नदी निश्छल अल्हड़-सी बह रह