दीपावली का पर्व प्रतिपल हमारे भीतर विद्यमान रह्ता है
सुषमा भंडारी दीपावली का पर्व प्रतिपल हमारे भीतर विद्यमान रह्ता है। दीपशिखायें प्रकाशित होती हैं और माहौल को खुशनुमा करती हैं जितना उत्सव इस मन में होता है उतना कहीं भी नहीं हो सकता, मगर ये तब सम्भव है जब हम दशहरा मनायें प्रतिपल। दशहरा यानि सत्य की जीत का बुराइयों के दमन का । इस मन में प्रतिक्षण उत्पन्न होते विकारों के दमन की समाप्ति का। हम रावण तो बन जाते हैं सहज , सहर्ष स्वत; ही रावण को मारते नहीं हैं , जानते हैं ये हमारा नाश करेगा किन्तु फिर भी अपने भीतर इसका राजपाठ होने देते हैं। सदा सत्य का उजाला ही असली दीवाली है साहस निष्ठाऔर ज्ञान का उत्सव ही दीवाली है। दीपावली राम रूपी, सत्य रूपी प्रकाश को जागृत करने एवं रावण रूपी अंधकार को मारने का का त्यौहार है।हम सदियों से इस पर्व को इसी आधार पर मनाते चले आ रहे हैं। असत्य पर सत्य की विजय, अंधकार पर प्रकाश की विजय । देखना ये है कि हम इसे कितना सार्थक कर पाते हैं। दीपावली समाज व व्यक्ति के जीवन के अनगिनत आयामों को दर्शाता है जिनमें से एक धर्म भी है , कई लोग अराजकता को फैलाने के उद्देश्य से धर्म से जोड़ देते हैं जो ठीक नहीं। वर्तमान समय जिस