पत्रकारिता से साहित्य में चली आई ‘न हन्यते’
पुस्तक : न हन्यते, लेखक : प्रो. संजय द्विवेदी मूल्य : 250 रुपये, प्रकाशक : यश पब्लिकेशंस, दरियागंज, नई दिल्ली समीक्षक - इंदिरा दांगी आचार्य संजय द्विवेदी की नई किताब 'न हन्यते' को खोलने से पहले मन पर एक छाप थी कि पत्रकारिता के आचार्य की पुस्तक है और दिवंगत प्रख्यातों के नाम लिखे स्मृति-लेख हैं, जैसे समाचार पत्रों में संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित हुआ करते ही हैं; लेकिन पुस्तक का पहला ही शब्द-चित्र मेरी इस धारणा को तोड़ता है। ‘सत्ता साकेत का वीतरागी’ में वे पूर्व प्रधानमंत्री और भारत के महान नेता अटल बिहारी वाजपेयी को देश के बड़े बेटे के तौर पर याद करते हैं; राजनीति से ऊपर जिसके लिये देश था। इसीलिये उनके देहवसान पर पूरा देश रोया और ये संस्मरण फिर उनकी स्मृति से हमें नम कर जाता है। ‘उन्हें भूलना है मुश्किल’ वैचारिकता के शिल्प-स्तर पर एक नये प्रयोग का संस्मरण था, जबकि लेखक ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रथम प्रवक्ता श्री माधव गोविंद वैध के जीवन की अनगिनत उपलब्धियों के बजाय उनको घर के ऐसे बड़े-बुज़ुर्ग के तौर पर याद किया है, जिनका जीवन आगे आने वाली पीढ़ियों के लिये रोशनी का एक स्तंभ