'दिल्ली चलो' अटूट राष्ट्रीयता तथा आत्मविश्वास का नारा
० योगेश भट्ट ० नयी दिल्ली, भारतीय भाषाओं के महत्त्व को नेताजी भी समझते थे । यही कारण है कि आजाद हिन्द रेडियो की सन् 1942में स्थापना कर गुजराती,मराठी, बांग्ला,पश्तो तमिल, फारसी , तेलगू तथा अंग्रेजी भाषाओं के माध्यम से भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की गाथाओं तथा समाचारों के बुलेटिन को प्रसारित करना आरंभ किया गया था। उनके द्वारा दिये गये नारे -'दिल्ली चलो ' आदि वस्तुत: उनके अटूट राष्ट्रीय भावना तथा अदम्य उत्साह और साहस का प्रतीक माना जा सकता है । केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी ने कालजयी स्वतन्त्रता सेनानी नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की जयन्ती के उपलक्ष्य पर छात्र छात्राओं को बधाई देते उन्हें निर्भीक तथा सच्चा सपूत और देश के लिए प्रेरणा स्तम्भ कहा है । उनके इस जयन्ती को पराक्रम दिवस के रुप में मनाने की बहुत ही अधिक प्रासंगिकता है । नेताजी विकट और विषम स्थितियों में भी भारतमाता की स्वतंत्रता के लिए देश के अन्दर तथा विदेशों में भी अंग्रेजों को लोहे के चने चबाने के लिए बाध्य किया । उन्होंने पेशावर तथा अफगानिस्तान के रास्ते बर्लिन जा कर वर्मा में भ