डा बाबा साहब ने न केवल सामाजिक अपितु भाषिक समरसता पर बल दिया
० योगेश भट्ट ० नयी दिल्ली - डा बाबा साहब ने न केवल सामाजिक अपितु भाषिक समरसता पर बल दिया और वे एक बहुभाषाविद् के रुप में सम्मानित रहें । यही कारण है कि संस्कृत को वे राष्ट्र भाषा के रुप में स्थापित करना चाहते थे । संभवतः इसलिए भी कि लगभग सभी भारतीय भाषाओं पर संस्कृत की प्रत्यक्ष या परोक्ष छाया भाषा संरचना या शब्दावली के रुप में देखी जा सकती है । आज जो भाषा के नाम पर विवाद खड़ा किया जा रहा है ,उसका भी समाधान इससे खोजा जा सकता था । केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी ने भारत के महान सपूत भारत रत्न डा भीमराव अम्बेडकर की जयन्ती के उपलक्ष्य पर कहा है कि वे राष्ट्र निर्माणकर्ताओं में से एक अति महत्त्वपूर्ण स्तम्भ थे । उन्होंने संविधान निर्माण तथा सामाजिक समरसता तथा न्याय, स्त्री जागृति,शिक्षा और समाज के अन्त्योदय के विकास के लिए जो अमूल्य योगदान दिया उसके लिए नियमवेत्ता, अर्थशास्त्री राष्ट्रचिन्तक , बहुभाषाविद्, मानव अधिकार संरक्षक तथा समाज सुधारक डा बाबा साहेब का राष्ट्र सदा ऋणी रहेगा । कुलपति प्रो वरखेड़ी ने इस बात पर बल देते य