'भारतीय नवजागरण का स्त्री-पक्ष' विषय पर गोष्ठी आयोजित
० योगेश भट्ट ० नयी दिल्ली -उनका जीवन अति नाटकीय, तूफानों और उथल-पुथल से भरा हुआ था। 19वीं सदी, जो कि एक पुरुष प्रधान सदी थी, वह उसमें अपने पांव जमा पाने में सफल रहीं। जिस तरह का वह समाज था, उस समय उनके चरित्र पर कई लाँछन लगे होंगे। उनके इसी निर्भीक व्यक्तिव ने मुझे प्रभावित किया।" औरतों के हक़ में न केवल बौद्धिक हस्तक्षेप किया अपितु समाज सेवा का वह क्षेत्र चुना जो किसी अकेली स्त्री के लिए उस समय लगभग असंभव माना जाता था। उनके द्वारा विधवा महिलाओं के आश्रम की स्थापना, उनके पुनर्विवाह तथा स्वावलंबन की पहल और यूरोप तथा अमेरिका में जाकर भारतीय महिलाओं के लिए समर्थन जुटाने का उनका भगीरथ प्रयास अक्सर धर्म परिवर्तन के उनके निर्णय की आलोचना की आड़ में छिपा दिया गया। यह किताब उस दौर की उन अनेक महिलाओं के बारे में भी ज़रूरी सूचनाएँ उपलब्ध कराती है जिन्हें आधुनिक इतिहास लेखन करते हुए अक्सर छोड़ दिया जाता है इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में राजकमल प्रकाशन समूह की ओर से नारीवादी लेखक-आलोचक सुजाता की किताब 'विकल विद्रोहिणी : पंडिता रमाबाई' के सन्दर्भ में 'भारतीय नवजागरण का स्त्री-पक्ष'