फ़िज़ाओं में ज़हर घोला आज मुस्कान रूठी
० सुषमा भंडारी ० हवाओं में ज़हर घोला फ़िज़ाओं में ज़हर घोला आज मुस्कान रूठी है खुशी मानव ने लूटी है हमारे पास सब प्रश्नों के हल मौजूद हैं लेकिन अभी भी रौन्द कर धरती ख़ज़ाना कर रहे खाली------ कभी काटे यहाँ पर्वत कभी रोका है पानी को खड़ी की हैं इमारत पर लूट खेतों की रानी को गाँव के गाँव खाली हो गये , उजडे पशु - पक्षी हुए हैं सब यहाँ विकसित मगर संस्कार से खाली------- कार खाने गगन चुम्बी बदरिया हो गई धूमिल केमिकल बन के नागिन सा गया नदियों में जैसे मिल बचें अब किस तरह से आज इस फैले ज़हर से हम हुई घर घर में बीमारी , हुये हैं घर के घर खाली----- आई दीवाली जगमग फिर बंदिशे साथ लाई है कुसूर अपना हमारा है अब! नियमों में भलाई है पटाखे -बम्ब- विस्फोटक हैं जीवन के लिए खतरा आओ मन से जला दें हम ईर्ष्या -द्वेष-बदहाली और हंसकर कहें सब से सभी को शुभ हो दीवाली---