केजरीवाल का बीजेपी प्यार क्या दिल्ली की दशा और दिशा बदलने में एक नया कदम है ?
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का बीजेपी प्यार क्या दिल्ली की दशा और दिशा बदलने में एक नया कदम है। आज तक के सारे उल्टे सीधे विवादों को ताक पर रख कर प्रधानमंत्री का आशीर्वाद और शाह से मुलाकात कर लगता है कि केजरीवाल "बुद्धम शरणं गच्छामि, धरमं शरणं गच्छामि" की उक्ति का प्रयोग करने जा रहे हैं। अच्छा भी है ताल में रहना ,मगर से क्या बैर करना। भविष्य की समस्त योजनाओं का प्रारूप और उनकी जिम्मेदारी केंद्र तथा उपराज्यपाल महोदय की स्वीकृति के अभाव में नहीं सम्पन्न हो सकती है। विकास की प्रगति में विगत बर्षो यदि कोई अवरोध सामने आते रहे हैं अथवा गिने जाते रहे तो इसी ताल मेल का अभाव रहा है। केजरीवाल जी जिस हटधर्मी से शासन करने का काम कर रहे थे, वह अन्ना जी के मंच का प्रभाव मात्र माना जा सकता है वह राजनीति की अल्पावस्था माना जा सकता है। अब ऐसा लगता है केजरीवाल जी राजनीति की डोर पकड़ने लगे हैं। देखना होगा वे प्रधानमंत्री जी तथा गृहमंत्री मंत्री जी के स्नेहाशीर्वाद पाने में कितने सक्षम होते हैं। विनयशीलता शत्रु को भी बस में करने में समर्थ मानी गई है।अब मन भेद और मत भेद में कितनी असमा