राजभाषा को जीवन की भी भाषा बनाएं
० प्रो. संजय द्विवेदी ० नयी दिल्ली - सूरत में 14 सितंबर से दो दिवसीय द्वितीय राजभाषा सम्मेलन प्रारंभ हो रहा है, तो यह जरूरी है कि हम राजभाषा की विकास बाधाओं पर बात जरूर करें। यह भी पहचानें कि राजभाषा किसकी है और राजभाषा की जरूरत किसे है? लंबे समय के बाद दिल्ली में एक ऐसी सरकार है जिसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रमुख नेता राजभाषा को लेकर बहुत संजीदा हैं। प्रधानमंत्री ने भारत ही नहीं विश्वमंच पर हिंदी में बोलकर आम हिंदुस्तानी को आत्मविश्वास से भर दिया है। आज हमारे प्रमुख मंत्रीगण राजभाषा हिंदी में बोलते और उसमें व्यवहार करते हैं। इसी तरह गृह मंत्री अमित शा स्वयं गुजराती भाषी हैं, का भी हिंदी प्रेम जाहिर है। वे राजभाषा की उपयोगिता और उसकी शक्ति को जिस तरह पारिभाषित करते हैं, वह अप्रतिम है। अभी पिछले माह भोपाल में हुआ उनका व्याख्यान हो या पिछले वाराणसी राजभाषा सम्मेलन में उनका वक्तव्य वो आंखें खोलने का काम करता है। सबसे बड़ी बात वे इसे औपनेवेशिक गुलामी से जोड़कर देखते हैं और हीनताग्रंथि से मुक्त होने की बात करते हैं। राजभाषा सम्मेलन का आयोजक गृह मंत्रालय ही है, ऐसे में उनका गृह मं