अमृतकाल में भारत का सांस्कृतिक पुनर्जागरण
० डॉ. संजय द्विवेदी ० नयी दिल्ली - सनातन संस्कृति का यह स्वर्णिम दौर चल रहा है और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सनातन संस्कृति के महत्त्वपूर्ण विचारों “वसुधैव कुटुम्बकम्” अर्थात् पूरा विश्व एक परिवार है तथा “सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः” सभी प्रसन्न एवं सुखी रहे, के इन्हीं मूलमंत्रों के साथ सनातन संस्कृति के संवाहक के रूप में हम सभी के मार्गदर्शक बन रहे हैं और समस्त विश्व को सनातन के विचारों से अवगत करवा रहे हैं। एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में हमारा इतिहास करीब साढ़े सात दशक पुराना है, लेकिन हमारी सभ्यता 5,000 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है। कहने की आवश्यकता नहीं कि भारत के खाते में अनगिनत उपलब्धियां हैं। उनके स्मरण के लिए इससे बेहतर और क्या अवसर हो सकता है कि जब हम अपनी आजादी के अमृतकाल में हैं, तो केवल इस दिशा में ठोस और एकजुट प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। हम सब इस बात से भलीभाँति परिचित हैं कि भारतीय संस्कृति का विश्वकोष कहा जाने वाला ‘रामचरितमानस’ दर्शन, आचारशास्त्र, शिक्षा, समाज सुधार, साहित्यिक, आदि कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है, जो व्यक्ति को जीवन मूल्यों का दर्शन