कन्या पूजा ( लघुकथा )
रामरती ! तुम्हे पहले भी कहा है अपनी बेटी को घर पर ही छोड कर आया कर, तेरा काम में नहीं, बेटी में ध्यान लगा रह्ता है। जी मालकिन। पुरानी मालकिन ने कभी टोका नहीं इसलिये ये ये ये----वो मैं---- मैं टोक रहीं हूं न बस्स्स्स्स। चिल्लाते हुये मिसेज शर्मा गुर्राई। खैर। बेचारी रामरती अपनी पड़ोसन बिमला के पास गुडिया को छौडने लगी। मदन पर उसको भरोसा न था रामरती का पति जो निक्क्मा और शराबी के अलावा कुछ नहीं। यूं ही सब ठीक चलता रहा । रामरती को काम की जरूरत थी सो वो भी भूल गई मालकिन के व्यव्हार को और मिसेज शर्मा भी रामरती के काम से खुश थी। नवरात्री आने वाली थी मिसेज शर्मा पूजा- पाठ धर्म -कर्म वाली थी। कन्या पूजन का दिन आया मिसेज शर्मा को सोसायटी में कहीं कन्या नहीं मिली या यूं कहें कि आने को तैयार नहीं हुई। रामरती घर जाओ अपनी बेटी को नहला कर ले आओ मुझे कन्या पूजन करना हैं रामरती मालकिन को टकटकी लगाये निहार रही थी। सुषमा भंडारी