आयुर्वेद में ऋतुचर्या का विधान पूरे वर्ष कैसे रहें स्वस्थ
० योगेश भट्ट ० आयुर्वेद का मुख्य प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा रोगी मनुष्य के रोग की चिकित्सा करना है। इस प्रयोजन की सम्पूर्ति हेतु आचार्यो ने दिनचर्या, रात्रिचर्या, ऋतुचर्या का विधान बताया है आयुर्वेद में काल को वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर, बसन्त, ग्रीष्म इन छः ऋतुओं में बाँटा गया है। इन ऋतुओं में पृथक-पृथक् चर्या बतायी गयी है। यदि मानव इन सभी का ऋतुओं में बतायी गयी चर्याओ का नियमित व विधिपूर्वक पालन करता है, तो किसी प्रकार के रोग उत्पन्न होने की सम्भावना नहीं रहती है, अन्यथा अनेक मौसमी बिमारियों से ग्रसित हो जाता है। मौसम के बदलाव के साथ ही खान-पान में बदलाव जरूरी है, ये बदलाव करके मौसमी-रोगों से बचा जा सकता है। शिशिर ऋतुचर्या समय - माघ, फाल्गुन (जनवरी, फरवरी) सम्भावित राेेग - अधिक भूख लगना, होंठ, त्वचा तथा बिवाई फटने लगती है। सर्दी व रूखापन, लकवा, बुखार, खांसी, दमा आदि रोगों की सम्भावना बढ़ जाती है। पथ्य आहार-विहार (क्या सेवन करें ?विविध प्रकार के पाक एवं लड्डू, अदरक, लहसुन की चटनी, जमींकन्द, पोषक आहार आदि सेवन करें। दूध का सेवन विशेष रूप से करें। तैल मालिश,