1982 गोंडा एनकाउंटर की पटकथा से मिलती है बिकरु, कानपुर की कहानी
लखनऊ . रिहाई मंच ने कहा कि पहले पुलिस कर्मियों की जानें गईं और अब उनको मारने के आरोप में ताबड़तोड़ एनकाउंटर का दावा. विकास मुठभेड़ कांड की सच्चाई छुपी नहीं है, देश में संविधान-कानून को मानते हुए पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच की रिहाई मंच मांग करता है. मंच ने कहा कि कानपुर कांड जिसमें पुलिस कर्मियों की जाने गईं न सिर्फ वो सवालों के घेरे में है बल्कि ऐसे अपरिपक्व आपरेशन के लिए जिम्मेदार कौन है. वहीं पुलिस के मनोबल के नाम पर हत्याओं का जो सिलसिला चल रहा उसे तत्काल रोका जाए क्योंकि इससे आम जनता में दहशत पैदा हो रही है. जो न जनता के हित में है न पुलिस के. रिहाई मंच महासचिव राजीय यादव ने कहा कि माधवपुर, गोंडा 1982 फर्जी मुठभेड़ कांड को नहीं भूलना चाहिए जिसमें डीएसपी केपी सिंह की हत्या के आरोप में पुलिस वालों को फांसी और उम्र कैद की सजा हुई. कानपुर मुठभेड़ या अन्य मुठभेड़ों की जांच हो जाए तो इस स्थिति से इनकार नहीं किया जा सकता. यहां गौर करने की बात है कि पूरी कहानी में सिर्फ विकास को ही मुख्य किरदार बनाया गया. क्या 1982 माधवपुर, गोंडा एनकाउंटर की तरह बिकरू, कानपुर एनकाउंटर नहीं हो सकता. वहां भी