मनुष्यता पर जो संकट है उसकी गहन पड़ताल करता है ‘कीर्तिगान’
० योगेश भट्ट ० नयी दिल्ली - पत्रकारिता जगत के भीतरी सत्ता-संघर्ष और संवेदनशील मानवीय मसलों पर उसकी व्यावसायिक निष्ठुरता से रू-ब-रू कराता है चंदन पांडेय का नया उपन्यास समाज में फैले उन्माद और भीड़ द्वारा की जा रही हत्याओं के मनोविज्ञान की जड़ों की कथात्मक लहजे में शिनाख्त करता है ‘कीर्तिगान’ कीर्तिगान चंदन पांडेय की उपन्यास त्रयी की दूसरी कड़ी है, पहली कड़ी है 'वैधानिक गल्प' पहले जिंदगी के साथ खेलते हैं फिर वह आपके साथ खेलना शुरू करती है, जितना बड़ा खेल आपने उसके साथ खेला होता है, जिंदगी उतना ही बड़ा नजीर बनाकर आपको दुनिया के सामने पेश करती है। यही मुझे इस उपन्यास के जरिये दुनिया के सामने रेखांकित करना था। यह बात कही लेखक चन्दन पांडेय ने जो अपने नए उपन्यास कीर्तिगान पर राधाकृष्ण प्रकाशन के कमीशनिंग एडिटर धर्मेन्द्र सुशांत से बात कर थे। राजकमल प्रकाशन एवं कुंजुम बुक्स के सयुक्त तत्वावधान आयोजित इस पुस्तक परिचर्चा का आयोजन बुधवार शाम ग्रेटर कैलाश 2 स्थित कुंजुम बुकस्टोर में किया गया। कीर्तिगान उपन्यास लिखने की प्रेरणा कैसे मिली इस सवाल पर बोलते हुए लेखक चन्दन पांडेय ने कहा कि ‘