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जम्मू और कश्मीर संघ राज्य क्षेत्र, नए लद्दाख़ संघ राज्य क्षेत्र भारत के मानचित्र में

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नए लद्दाख़ संघ राज्य क्षेत्र में कारगिल तथा लेह - दो ज़िले हैं और भूतपूर्व जम्मू और कश्मीर राज्य का बाक़ी हिस्सा नए जम्मू और कश्मीर राज्य संघ क्षेत्र में है। 1947 में भूतपूर्व जम्मू और कश्मीर राज्य में निम्न 14 जिले थे – कठुआ, जम्मू, ऊधमपुर, रियासी, अनंतनाग, बारामूला, पुँछ, मीरपुर, मुज़फ़्फ़राबाद, लेह और लद्दाख़, गिलगित, गिलगित वजारत, चिल्हास और ट्राइबल टेरिटॉरी। 2019 तक भूतपूर्व जम्मू और कश्मीर की राज्य सरकार ने इन 14 ज़िलों के क्षेत्रों को पुनर्गठित करके 28 ज़िले बना दिए थे। नए जिलों के नाम निम्न प्रकार से हैं – कुपवारा, बान्दीपुर, गंडेरबल, श्रीनगर, बड़गाम, पुलवामा, शूपियान, कुलगाम, राजौरी, रामबन, डोडा, किश्‍तवार, साम्बा और कारगिल ।  संविधान के अनुच्छेद 370 को प्रभावी तौर से निराकरित करने और जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 जारी करने के उपरांत भूतपूर्व जम्मू और कश्मीर राज्य, 31 अक्टूबर 2019 को, नए जम्मू कश्मीर संघ राज्य क्षेत्र तथा नए लद्दाख़ संघ राज्य क्षेत्र के रूप में पुनर्गठित हो गया है। इनमे से कारगिल ज़िले को लेह और लद्दाख़ ज़िले के क्षेत्र में से अलग करके बनाया गया था। र

50th.IFFI कैलाइडोस्‍कोप उत्‍सव में दिखाई जाने वाली फिल्‍मों की घोषणा

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इस वर्ष भारतीय अंतर्राष्‍ट्रीय फिल्‍मोत्‍सव मनाया जा रहा है, जिसे एशिया महादेश के शुरूआती फिल्‍मोत्‍सवों में से एक माना जाता है। 50वें भारतीय अन्‍तर्राष्‍ट्रीय फिल्‍मोत्‍सव के दौरान भारतीय पनोरमा में 76 देशों की 200 से अधिक सर्वेश्रेष्‍ठ फिल्‍में, 26‍ फीचर फिल्‍में और 15 गैर फीचर फिल्‍में दिखाई जाएंगी। इस स्‍वर्ण जयंती आयोजन में 10,000 से अधिक लोगों और सिनेमा प्रेमियों के शामिल होने की संभावना है। 50वें भारतीय अन्‍तर्राष्‍ट्रीय फिल्‍मोत्‍सव (आईएफएफआई) ने कैलाइडोस्‍कोप उत्‍सव में दिखाई जाने वाली फिल्‍मों की सूची की घोषणा की है, जो फिल्‍मोत्‍सव का सबसे महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है। प्रत्‍येक वर्ष बेजोड़ सामग्री एवं विलक्षण फिल्‍म निर्माण के बल पर विश्‍वभर से आई फिल्‍में इस महोत्‍सव के दर्शकों के दिल-दिमाग पर अपनी-अपनी छाप छोड़ती हैं। अन्‍तर्राष्‍ट्रीय परिदृश्‍य में जिन फिल्‍मों ने धूम मचाई है, उनमें पैरासाइट, पोर्ट्रेट ऑफ ए लेडी ऑन फायर, साइनोनिम्‍स आदि शामिल हैं। 50वें आईएफएफआई के कैलाइडोस्‍कोप उत्‍सव के दौरान गोवा फिल्‍मोत्‍सव में शामिल होने वाले सिनेमा प्रेमियों के लिए विश्‍वभर की अनोखी फि

Jashn-e-Urdu-2019,Urdu Academy,Delhi

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सिखों के जनसंहार के ‘गुनाहगारों को सजा देंने की मांग 

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नई दिल्ली के जंतर मंतर पर एकत्रित होकर, 1984 में सिखों के जनसंहार की 35वीं बरसी के अवसर पर जनसभा आयोजित की गई । सभा को आयोजित करने वालों में थे लोक राज संगठन और कई दूसरे संगठन, जो उस जनसंहार के पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की मांग को लेकर और भविष्य में इस प्रकार के कांडों को रोकने के लिए जरूरी कानूनी व राजनीतिक कदमों को लागू करवाने के लिए, लम्बा तथा अडिग संघर्ष करते आये हैं।   “1984 के गुनाहगारों को सजा दें!”, “राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और बंटवारे की राजनीति के खिलाफ एकजुट हों!”, “एक पर हमला, सब पर हमला!” - एक बड़े बैनर पर लिखे हुए इन नारों में सभा में भाग लेने वालों की भावनाओं का समावेश था। “बांटो और राज करो की राजनीति मुर्दाबाद!”, “राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंकवाद को एकजुट होकर खत्म करें!”, “राजकीय आतंकवाद मुर्दाबाद!”, “हिन्दोस्तानी राज्य सांप्रदायिक है, लोग सांप्रदायिक नहीं!”, आदि जैसे नारे लिखे हुये बैनर और प्लाकार्ड कार्यकर्ताओं के हाथों में और सभा स्थल के चारों तरफ दिख रहे थे। सभा के सामूहिक रूप से आयोजक थे लोक राज संगठन, वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया, हि

INDO~NEPALसंबंध रोटी और बेटी वाला है M.ZAHID

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Child Singer Mannat & Mahak छठ गीत नए अंदाज़ में

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साहित्य न केवल इतिहास का स्त्रोत है बल्कि इतिहास का निर्धारक तत्व भी है~डाॅ.अविनाश कुमार

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जयपुर - राजस्थान विश्वविद्यालय के इतिहास एवं भारतीय संस्कृति के मंच हेरोडोट्स सोसायटी द्वारा 'कहानियों के द्वारा इतिहास' विषय पर डाॅ. अविनाश कुमार के विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन किया गया। डाॅ.अविनाश कुमार, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से पीएचडी, लन्दन विश्वविद्यालय से पोस्ट डाॅक एवं वर्धा विश्वविद्यालय में अध्यापन कर चुके हैं। वे वर्तमान में वाॅटरएड, भारत के कार्यक्रम एवं नीति निदेशक हैं। संयोजिका डाॅ.नीकी चतुर्वेदी ने विषय प्रवर्तन करते हुए रेखांकित किया कि साहित्य के सृजन में अन्तर्निहित पहचान के गठन के भाव को चिन्हित करके इतिहास को सही अर्थों में समझा जा सकता है । विभागाध्यक्ष डाॅ. प्रमिला पूनिया ने साहित्य के इतिहास के स्त्रोत के रूप में महत्त्व को बताया। डाॅ.अविनाश कुमार ने अपने व्याख्यान में हिन्दी साहित्य को औपनिवेशिक चुनौती के प्रत्युत्तर रूप में समझाने का प्रयास किया। राष्ट्रीयता के सृजन में इतिहास और साहित्य के योगदान को उद्धरण सहित प्रस्तुत करते हुए डाॅ. कुमार ने बताया कि किस प्रकार साहित्य न केवल इतिहास का स्त्रोत है बल्कि इतिहास का निर्धारक तत्व भी है। अध्यक्ष डाॅ